Saturday, 27 February 2016

ओह! तो ये बात है, जिसे तुम अब तक ढो रहे हो ....दो बौद्ध भिक्षु पहाड़ी पर .....

ओह! तो ये बात है, जिसे तुम अब तक ढो रहे हो

दो बौद्ध भिक्षु पहाड़ी पर स्थित अपने मठ की ओर जा रहे थे। रास्ते में एक गहरा नाला पड़ता था। वहां नाले के किनारे एक युवती बैठी थी, जिसे नाला पार करके मठ के दूसरी ओर स्थित अपने गांव पहुंचना था, लेकिन बारिश के कारण नाले में पानी अधिक होने से युवती नाले को पार करने का साहस नहीं कर पा रही थी।भिक्षुओं में से एक ने, जो अपेक्षाकृत युवा था, युवती को अपने कंधे पर बिठाया और नाले के पार ले जाकर छोड़ दिया। युवती अपने गांव की ओर जाने वाले रास्ते पर बढ़चली और भिक्षु अपने मठ की ओर जाने वाले रास्ते पर।दूसरे भिक्षु ने युवती को अपने कंधे पर बिठा कर नाला पार कराने वाले भिक्षु से उस समय तो कुछ नहीं कहा, पर मन मारकर उसके साथ-साथ पहाड़ी पर चढ़ता रहा। मठ आ गया तो इस भिक्षु से और नहीं रहा गया।उसने अपने साथी से कहा, हमारे संप्रदाय में स्त्रीको छूने की ही नहीं, देखने की भी मना है। लेकिन तुमने तो उस युवा स्त्री को अपने हाथों से उठाकर कंधे पर बिठाया और नाला पार करवाया। यह बड़ी लज्जा की बात है।ओह! तो ये बात है, पहले भिक्षु ने कहा, पर मैं तो उसे नाला पार कराने के बाद वहीं छोड़ आया था, लेकिन लगता है कि तुम उसे अब तक ढोरहे हो। संन्यास का अर्थ किसी की सेवा या सहायता करने से विरत होना नहीं होता, बल्कि मन से वासना और विकारों का त्याग करना होता है।इस दृष्टि से उस युवती को कंधे पर बिठाकर नाला पार करा देने वाला भिक्षु ही सही अर्थों में संन्यासी है। दूसरे भिक्षु का मन तो विकार से भरा हुआ था। हम अपने मन में समाए विकारों और वासना पर नियंत्रण कर लें, तो गृहस्थ होते हुए भी संन्यासी ही हैं।संक्षेप मेंमन से यदि मनुष्य अपने विकार और वासनाएं निकाल दे तो वह एक सफल मनुष्य बन सकता है। कहा भी गया है कि मनुष्य का चरित्र ही उसका परिचय होता है।

Wednesday, 24 February 2016

सम्राट अशोक के शिलालेख

सम्राट अशोक के अभिलेख भाषा प्राकृत [ धम्म लिपि ]
[ शाक्य वशं मौर्य वशं के क्षत्रियों में प्रज्ञा सम्पन्न श्रीमान चंद्रगुप्त राजा हुए और उनके भाई विष्णुगुप्त ]

सम्राट अशोक के मास्की शिलालेख में अपने को शाक्य क्षत्रिय कुल का कहा है - इस प्रकार पिप्पलिवन,मोरिय गणराज्य के शाक्य-क्षत्रिय मौर्य कहलाये।

प्राचीन पालि साहित्य ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वज हिमालय की तराइ में स्थित पिप्पलियवन के मोरिय गणराज्य भगवान बुद्ध के समय शासन करते थे । भारत की सबसे प्राचीन भाषा पालि की इन गाथाओ में चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय इस प्रकार है।

[आदिच्चा नाम गोतेन, सकिया नाम जातिया। मोरियान खतियानं वसं जातं सिरिधरं। चन्द्रगुत्तो,ति पातं विसनुगुत्तो ति भतुका ततो।]

:अनुवाद
उत्तरविरत्ताकथा थेरमहिंद:अनुवादक सिद्धार्थ वर्द्धन सिंह
शाक्य वशं  मौर्यवशं के क्षत्रियों में प्रज्ञा सम्पन्न श्रीमान चन्द्रगुप्त राजा हुए और उनके भाई विष्णुगुप्त । ]

मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफ़ाओं की दीवारों में अपने शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।
रुम्मिनदेई के अशोक-स्तंभ पर ख़ुदा हुआ यह लेख
भाषा प्राकृत [ धम्म लिपि ] में है।

लिप्यंतर
देवानं पियेन पियदसिन लाजिन वीसतिवसाभिसितेन
अतन आगाच महीयिते हिद बुधे जाते सक्यमुनीति
सिलाविगडभीचा कालापित सिलाथभे च उसपापिते
हिद भगवं जातेति लुंमिनिगामे उबलिके कटे
अठभागिये च


अर्थ :
देवताओं के प्रिय राजा ने (अपने) राज्याभिषेक के 20  वर्ष अवस्था बाद स्वयं आकर इस स्थान की पूजा की,
क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म हुआ था।
यहाँ पत्थर की एक दीवार बनवाई गई और पत्थर का एक स्तंभ खड़ा किया गया।
बुद्ध भगवान यहाँ जनमे थे, इसलिए लुम्बिनी ग्राम को कर से मुक्त कर दिया गया और
(पैदावार का) आठवां भाग भी (जो राज का हक था) उसी ग्राम को दे दिया गया है।

Thursday, 11 February 2016

भगवान् बुद्ध के 38 महत्वपूर्ण उपदेश

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भगवान् बुद्ध के 38 महत्वपूर्ण उपदेश:-

1. मूर्खो की संगति न करना ।
2. विद्वानों की संगती करना।
3. पूज्यनीय का सम्मान करना।
4. अनुकूल स्थान पर निवास करना।
5. पुण्य आचरण का संचय करना।
6. कुशल धर्म का संकल्प करना।
7. बहुश्रुत होना, धम्मग्रन्थों का ज्ञान होना।
8. शिल्प विद्याएं सीखना ।
9. शिष्ट होना।
10. सुशिक्षित होना।
11. सुन्दर वचन बोलना।
12. माता पिता की सेवा करना।
13. पत्नी औरबच्चों की सेवा करना
14. पाप रहित कर्मो को करना ।
15. दान देना।
16. मन, वचनऔर कर्म से पुण्य का संचय करना धर्म की सेवा करना।
17. अपने बंधुओं रिश्तेदारों का आदर सत्कार करना।
18. निर्दोष कार्यों को करना।
19. मन, वचन और शरीर से पाप कर्म न करना ।
20. शराब और किसी भी तरह का नशा न करना।
21. धम्म के कार्यो में आलस्य न करना।
22. गौरव मान-मर्यादा बढ़ाने वाले कार्य करना।
23. विनम्र होना।
24. संतुष्ट रहना।
25. कृत्यज्ञ होना।
26. उचित समय पर धम्म प्रवचन सुनना।
27. क्षमाशील होना।
28. गुरुजनो के आदेश का पालन करना।
29. संतो और अच्छे लोगों का दर्शन करना।
30. उचित समय पर धर्म प्रवचन देना लोगो को धर्म बताना।
31. तप करना और लक्ष्य प्राप्ति हेतु कष्टों को भी सहना।
32. ब्रह्मचर्य पालन करना।
33. चार आर्य सत्यों को समझना।(Four Noble Truths)
34. निर्वाण का साक्षात्कार करना, निर्वाणप्राप्ति के लिए परिश्रम करना।
35. लोक में न भटकना, अपनी चेतना शांत रखना, संसार के मोह माया में न फंसना, संसारमें विचलित न होना।
36. शोक न करना।
37. राग, द्वेष और मोह की रज से दूर रहना।
38. निर्भय रहना.

Thursday, 4 February 2016

गौतम बुद्ध के राजा को उपदेश देने की घटना

मै एक अछूत कन्या हूँ।
 मेरे कुएं से पानी निकालने पर जल दूषित हो जायेगा।
एक बार वैशाली के बाहर जाते धम्म प्रचार के लिए जाते हुए गौतम बुद्ध ने देखा कि कुछ सैनिक तेजी से भागती हुयी एक लड़की का पीछा कर रहे हैं। वह डरी हुई लड़की एक कुएं के पास जाकर खड़ी हो गई। वह हांफ रही थी और प्यासी भी थी। बुद्ध ने उस बालिका को अपने पास बुलाया और कहा कि वह उनके लिए कुएं से पानी निकाले, स्वयं भी पिए और उन्हें भी पिलाये। इतनी देर में सैनिक भी वहां पहुँच गये। बुद्ध ने उन सैनिकों को हाथ के संकेत से रुकने को कहा। उनकी बात पर वह कन्या कुछ झेंपती हुई बोली ‘महाराज! मै एक अछूत कन्या हूँ। मेरे कुएं से पानी निकालने पर जल दूषित हो जायेगा।’बुद्ध ने उस से फिर कहा ‘पुत्री, बहुत जोर की प्यास लगी है, पहले तुम पानी पिलाओ। इतने में वैशाली नरेश भी वहां आ पहुंचे। उन्हें बुद्ध को नमन किया और सोने के बर्तन में केवड़े और गुलाब का सुगन्धित पानी पानी पेश किया।
 बुद्ध ने उसे लेने से इंकार कर दिया।
  बुद्ध ने एक बार फिर बालिका से अपनी बात कही। इस बार बालिका नेसाहस बटोरकर कुएं से पानी निकल कर स्वयं भी पिया और गौतम बुद्ध को भी पिलाया। पानी पीने के बाद बुद्ध ने बालिकासे भय का कारण पूछा। कन्या ने बताया मुझे संयोग से राजा के दरबार में गाने का अवसर मिला था। राजा ने मेरा गीत सुन मुझे अपने गले की माला पुरस्कार में दी। लेकिन उन्हें किसी ने बताया कि मै अछूत कन्या हूँ। यह जानते ही उन्होंने अपने सिपाहियों को मुझे कैद खाने में डाल देने का आदेश दिया। मै किसी तरह उनसे बचकर यहाँ तक पहुंची थी। 
 
इस पर बुद्ध ने कहा, सुनो राजन! 
यह कन्या अछूत नहीं है, आप अछूत हैं। जिस बालिका के मधुर कंठ से निकले गीत का आपने आनंद उठाया, उसे पुरस्कार दिया, वह अछूत हो ही नहीं सकती।
 
 गौतम बुद्ध के सामने वह राजा लज्जित ही हो सकते थे।  देने

Monday, 1 February 2016

अपने माता पिता का सम्मान करने के 35 तरीके

माता - पिता इस दुनिया में सबसे बड़ा खज़ाना हैं..!!

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1. उनकी उपस्थिति में अपने फोन को दूर रखो.
2. वे क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान दो.
3. उनकी राय स्वीकारें.
4. उनकी बातचीत में सम्मिलित हों.
5. उन्हें सम्मान के साथ देखें.
6. हमेशा उनकी प्रशंसा करें.
7. उनको अच्छा समाचार जरूर बताएँ.
8. उनके साथ बुरा समाचार साझा करने से बचें.
9. उनके दोस्तों और प्रियजनों से अच्छी तरह से बोलें.
10. उनके द्वारा किये गए अच्छे काम सदैव याद रखें.
11. वे यदि एक ही कहानी दोहरायें तो भी ऐसे सुनें जैसे पहली बार सुन रहे हो.
12. अतीत की दर्दनाक यादों को मत दोहरायें.
13. उनकी उपस्थिति में कानाफ़ूसी न करें.
14. उनके साथ तमीज़ से बैठें.
15. उनके विचारों को न तो घटिया बताये न ही उनकी आलोचना करें.
16. उनकी बात काटने से बचें.
17. उनकी उम्र का सम्मान करें.
18. उनके आसपास उनके पोते/पोतियों को अनुशासित करने अथवा मारने से बचें.
19. उनकी सलाह और निर्देश स्वीकारें.
20. उनका नेतृत्व स्वीकार करें.
21. उनके साथ ऊँची आवाज़ में बात न करें.
22. उनके आगे अथवा सामने से न चलें.
23. उनसे पहले खाने से बचें.
24. उन्हें घूरें नहीं.
25. उन्हें तब भी गौरवान्वित प्रतीत करायें जब कि वे अपने को इसके लायक न समझें.
26. उनके सामने अपने पैर करके या उनकी ओर अपनी पीठ कर के बैठने से बचें.
27. न तो उनकी बुराई करें और न ही किसी अन्य द्वारा की गई उनकी बुराई का वर्णन करें.
28. उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में शामिल करें.
29. उनकी उपस्थिति में ऊबने या अपनी थकान का प्रदर्शन न करें.
30. उनकी गलतियों अथवा अनभिज्ञता पर हँसने से बचें.
31. कहने से पहले उनके काम करें.
32. नियमित रूप से उनके पास जायें.
33. उनके साथ वार्तालाप में अपने शब्दों को ध्यान से चुनें.
34. उन्हें उसी सम्बोधन से सम्मानित करें जो वे पसन्द करते हैं.
35. अपने किसी भी विषय की अपेक्षा उन्हें प्राथमिकता दें.
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यह मेसेज हर घर तक पहुंचने मे मदद करे तो बड़ी कृपा होगी मानव जाति का उद्धार संभव है यदि ऊपर लिखी बातों को जीवन में उतार लिया तो। सबसे पहले भगवान, गुरु माता पिता ही हे हर धर्म में इस बात का उल्लेख हैं

Sunday, 31 January 2016

जापान के बारे में रोचक तथ्य, about japan in hindi

बुद्धा को मानने वाला देश जापान लगभग 6800 द्वीपो से मिलकर बना है इस देश का नाम कुछ भी नया करने में सबसे आगे रहता है यहां के लोग कितने मेहनती है इस बात का अंदाजा यही से लगाया जा सकता है कि दूसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका जैसे देशो ने जोर लगा लिया था लेकिन जापान पीछे हटने को तैयार नही हुआ। आज हम जापान से जुड़े कुछ रोचक तथ्य बताएंगे जो शायद आप न जानते हो।

1. जापान में हर साल लगभग 1500 भुकंम्प आते है मतलब कि हर दिन चार.

2. मुसलमानों को “नागरिकता” न देने वाला जापान अकेला राष्ट्र है। यहाँ तक कि मुसलमानों को जापान में किराए पर मकान भी नहीं मिलता।

3. जापान,के किसी विश्वविद्यालय में अरबी या अन्य कोई इस्लामी भाषा नहीं सिखाई जाती।

4. कुत्ता पालने वाला प्रत्येक जापानी नागरिक उसे घुमाते समय अपने साथ एक विशेष बैग रखता है, जिसमें वह उसका मल एकत्रित कर लेता है।

5. जापान में 10 साल की उम्र होने तक बच्चों को कोई परीक्षा नहीं देनी पड़ती।

6. जापान में बच्चे और अध्यापक एक साथ मिलकर Classroom को साफ करते है।

7. जापान के लोगो की औसत आयु दुनिया में सबसे ज्यादा है.(82 साल). जापान में 100 साल से ज्यादा उम्र के 50,000 लोग है।

8. जापान के पास किसी प्रकार के प्राकृतिक संसाधन नहीं है और वे प्रतिवर्ष सैंकड़ों भूकंप भी झेलते हैं, किन्तु उसके बाद भी जापान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है।

9. “Sumo” जापान की सबसे लोकप्रिय खेल है. इसके इलावा बेसबाल भी काफी लोकप्रिय है.

10. जापान में सबसे ज्यादा लोग पढ़े लिखे है . जहां साक्षरता दर 100% है. जहां अखबारों और न्युज चैनलों में भारत की तरह दुर्घटना, राजनीति, वाद-विवाद, फिल्मी मसालो आदि पर खबरे नही छपती. यहां पर अखबारों में आधुनिक जानकारी और आवश्क खबरें ही छपती है.

11. जापान में जो किताबें प्रकाशित होती हैं उन में से 20% Comic Books होती हैं.

12. जापान में 1 जनवरी को नववर्ष का स्वागत मंदिर में 108 घंटियाँ बजा कर किया जाता है।

13. जापानी समय के बहुत पक्के है यहां तो ट्रेने भी ज्यादा से ज्यादा 18 सैकेंड लेट होती है।

14. “Vending Machine” वह मशीन होती है जिसमें सिक्का डालने से कोई चीज आदि निकल आती है जेसे कि noodles, अंडे, केले आदि. जब आप जापान में होगे तो इन मशीनों को हर जगह पाएँगे. यह हर सड़क पर होती है. जापान में लगभग 55 लाख वेंडिंग मशीन है।

15. 2015 तक जापान में देर रात तक नाचना मना था।

16. जापान में एक ऐसी बिल्डिंग भी है जिसके बीच से हाइवे गुजरता है।

17. जापान चारों और से समुंदर से घिरा होने के बावजूद भी 27 प्रतीशत मछलियां दूसरे देशों से मंगवाता है.

18. काली बिल्ली को जापान में भाग्यशाली माना जाता है।

19. जापान में 90% “Mobile WaterProof” है क्योकिं ये लोग नहाते समय भी फोन यूज करते है।

20. जापान में 70 तरह की “fanta” मिलती है।

21. जापान में सबसे ज्यादा सड़के ऐसी है जिनका कोई नाम नही है।

22. जापानियो के पास “Sorry” कहने के 20 से ज्यादा तरीके है।

23. जापान दुनिया का सबसे बड़ा आॅटोमोबाइल निर्माता है।

24. साल 2011 में जापान में जो भूकंप आया था वह आज तक का सबसे तेज भूकंप था। इस भूकंप से पृथ्वी के “घूमने की गति” में 1.8 microseconds की वृद्धि हुई थी।

25. जापान दुनिया का केवल एकलौता देश है जिस पर “परमाणु बमों” का हमला हुआ है. जैसा कि आप जानते ही है कि अमेरिका ने 6 और 9 अगस्त 1945 में हीरोशिमा और नागाशाकी पर बम फेंके थे. इन बमों को little-boy और Fat-man नाम दिया गया था.

26. जापान में इस्लाम पंथ नहीं होने के कारण वहाँ स्लीपर सेल नहीं हैं और वहाँ एक भी आतंकी वारदात नहीं हुई है।
              

Friday, 29 January 2016

बौद्ध संगीति क्या है

बौद्ध संगीति का तात्पर्य उस 'संगोष्ठी' या 'सम्मेलन' या 'महासभा' से है, जो तथागत बुद्ध के परिनिर्वाण के अल्प समय के पश्चात से ही उनके उपदेशों को संगृहीत करने, उनका पाठ (वाचन) करने आदि के उद्देश्य से सम्बन्धित थी। इन संगीतियों को प्राय: 'धम्म संगीति' (धर्म संगीति) कहा जाता था। संगीति का अर्थ होता है कि 'साथ-साथ गाना'।

  इतिहास में चार बौद्ध संगीतियों का उल्लेख हुआ है-


प्रथम बौद्ध संगीति (483 ई.पू.)
आज राम = आज+रा+म
1. आज-अजातशत्रु (शासनकाल)
2. रा-राजगृह (स्थान)
3. म-महाकश्यप (अध्यक्ष)

 प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन 483 ई.पू. में 'राजगृह' (आधुनिक राजगिरि), बिहार की 'सप्तपर्णि गुफ़ा' में किया गया था। गौतम बुद्ध के निर्वाण प्राप्त करने के कुछ समय बाद ही इस संगीति का आयोजन किया गया था।

इस संगीति में बौद्ध स्थविरों (थेरों) ने भी भाग था।
बुद्ध के प्रमुख शिष्य 'महाकस्यप' (महाकश्यप) ने इसकी अध्यक्षता की।
तथागत बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को लिपिबद्ध नहीं किया था, इसीलिए संगीति में उनके तीन शिष्यों-'महापण्डित महाकाश्यप', सबसे वयोवृद्ध 'उपालि' तथा सबसे प्रिय शिष्य 'आनन्द' ने उनकी शिक्षाओं का संगायन किया।
इसके पश्चात उनकी ये शिक्षाएँ गुरु-शिष्य परम्परा से मौखिक चलती रहीं, उन्हें लिपिबद्ध बहुत बाद में किया गया। ये बौद्ध काल की प्रथम संगीति हुयी॥

द्वितीय बौद्ध संगीति (383 ई.पू.)
कल वैशाली सब = कल+वैशाली+सब
1. कल-कालाशोक (शासनकाल)
2. वैशाली-वैशाली (स्थान)
3. सब-सबाकामी (अध्यक्ष)

  दूसरी बौद्ध सगीति का आयोजन वैशाली में किया गया था। इस संगीति का आयोजन 'प्रथम बौद्ध संगीति' के एक शताब्दी बाद किया गया।

एक शताब्दी बाद बुद्धोपदिष्ट कुछ विनय-नियमों के सम्बन्ध में भिक्षुओं में विवाद उत्पन्न हो गया।
इस विवाद के परिणामस्वरूप ही वैशाली में यह बौद्ध संगीति आयोजित हुई।
इस संगीति में विनय-नियमों को और भी कठोर बनाया गया।
जो बुद्धोपदिष्ट शिक्षाएँ अलिखित रूप में प्रचलित थीं, उनमें संशोधन कर दिया गया।

तृतीय बौद्ध संगीति (255 ई.पू.)
आपके मत = आ+पके+म+त
1. आ-अशोक (शासनकाल)
2. पके-पाटलिपुत्र (स्थान)
3. म+त-मोग्गलीपुत्त तिस्स (अध्यक्ष)

तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन 249 ई.पू. में सम्राट अशोक के शासनकाल में पाटलीपुत्र में किया गया था। इस बौद्ध संगीति की अध्यक्षता तिस्स ने की थी। इसी संगीति में 'अभिधम्मपिटक' की रचना हुई और बौद्ध भिक्षुओं को विभिन्न देशों में भेजा गया। इनमें अशोक के पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा गया था।

बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार तथागत बुद्ध के निर्वाण के 236 वर्ष बाद इस संगीति का आयोजन हुआ।
सम्राट अशोक के संरक्षण में तीसरी संगीति 249 ई.पू. में पाटलीपुत्र में हुई थी।
इसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ ‘कथावत्थु’ के रचयिता तिस्स मोग्गलीपुत्र ने की थी।
विश्वास किया जाता है कि इस संगीति में 'त्रिपिटक' को अन्तिम रूप प्रदान किया गया।
यदि इसे सही मान लिया जाए कि अशोक ने अपना सारनाथ वाला स्तम्भ लेख इस संगीति के बाद उत्कीर्ण कराया था, तब यह मानना उचित होगा, कि इस संगीति के निर्णयों को इतने अधिक बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों ने स्वीकार नहीं किया कि अशोक को धमकी देनी पड़ी कि संघ में फूट डालने वालों को कड़ा दण्ड दिया जायेगा।
इस संगीति के बाद भी भरपूर प्रयास किए गए कि सभी भिक्षुओं को एक ही तरह के बौद्ध संघ के अंतर्गत रखा जाये, किंतु देश और काल के अनुसार इनमें बदलाव आता रहा।इस तरह ये तीसरी संगीति अशोक के शासन मे हुयी।

चतुर्थ बौद्ध संगीति (ई. की प्रथम शताब्दी)
कनकवन में अब = कन+क+वन+में+अ+ब
1. कन-कनिष्क (शासनकाल)
2. क+वन-कुण्डलवन (स्थान)
3. अ+ब-अश्वघोस/बसुमित्र/वसुमित्र (अध्यक्ष)
अंतिम बौद्ध संगीति कुषाण सम्राट कनिष्क के शासनकाल (लगभग 120-144 ई.) में हुई। यह संगीति कश्मीर के 'कुण्डल वन' में आयोजित की गई थी। इस संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे। अश्वघोष कनिष्क का राजकवि था।

 इसी संगीति में बौद्ध धर्म दो शाखाओं- हीनयान और महायान में विभाजित हो गया। हुएनसांग के मतानुसार सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और त्रिपिटक का पुन: संकलन व संस्करण हुआ। इसके समय से बौद्ध ग्रंथों के लिए संस्कृत भाषा का प्रयोग हुआ और महायान बौद्ध संप्रदाय का भी प्रादुर्भाव हुआ। इस संगीति में नागार्जुन भी शामिल हुए थे। इसी संगीति में तीनों पिटकों पर टीकायें लिखी गईं, जिनको 'महाविभाषा' नाम की पुस्तक में संकलित किया गया। इस पुस्तक को बौद्ध धर्म का 'विश्वकोष' भी कहा जाता है।इस तरह अब तक बौद्ध धर्म की चार संगीतियां हुयी

Monday, 25 January 2016

भारत विश्व गुरु कैसे बन सकता है.?

जय सम्राट अशोक नमो बुद्धाय

भारत विश्व गुरु तब तक नहीं बन सकता जब तक कि हम अपने पूर्वजों की नीतियों पर नहीं चलेंगे। महान सम्राट चंद्र गुप्त मौर्य व सम्राट अशोक की कार्यशैली सर्वश्रेष्ठ थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तमाम शासकों के जीवनकाल के अध्ययन में भी यह साबित हो चुका है कि अशोक महान की शासन शैली सबसे अच्छी थी।
लिहाजा विश्व के कई देशों ने सम्राट अशोक की शासन शैली को अपनाया। सम्राट अशोक ही ऐसे शासक थे, जिन्होंने सिकंदर जैसे लड़ाके को देश के बाहर भगाया। इस महान शासक और बुद्ध को आज भुलाया जा रहा है। बुद्ध को पूरा विश्व गुरु मानता है। उन्हें भारत में ही पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जाता। जबकि बुद्ध के विचार पूरी तरह विज्ञान पर आधारित हैं। लोग जब तक धम्म के मार्ग पर नहीं चलेंगे और सम्राट अशोक की शासन प्रणाली को लागू नहीं किया जाएगा। तब तक भारत आगे नहीं बढ़ सकता है।