Sunday, 20 September 2015

पेरियार वाणी

📢 पेरियार वाणी 📢


1. उन देवताओ को नष्ट कर दो जो तुम्हे शुद्र कहे , उन पुराणों ओर इतिहास को ध्वस्त कर दो , जो देवता को शक्ति प्रदान करते है | उस देवता कि पूजा करो जो वास्तव में दयालु भला ओर बौद्धगम्य है |
२. ब्राहमणों के पैरों में क्यों गिरना ? क्या ये मंदिर है ? क्या ये त्यौहार है ? नही , ये सब कुछ भी नही है | हमें बुद्धिमान व्यक्ति कि तरह व्यवहार करना चाहिए यही प्रार्थना का सार है |
३. अगर देवता ही हमें निम्न जाति बनाने का मूल कारन है तों ऐसे देवता को नष्ट कर दो , अगर धर्म है तों इसे मत मानो ,अगर मनुस्मृति , गीता, या अन्य कोई पुराण आदि है तों इसको जलाकर राख कर दो | अगर ये मंदिर , तालाब, या त्यौहार है तों इनका बहिस्कार कर दो | अंत में हमारी राजनीती ऐसी करती है तों इसका खुले रूप में पर्दाफास करो |
४. संसार का अवलोकन करने पर पता चलता है की भारत जितने धर्म ओर मत मतान्तर कही भी नही है | ओर यही नही , बल्कि इतने धर्मांतरण (धर्म परिवर्तन ) दूसरी जगह कही भी नही हुए है ? इसका मूल कारण भारतीयों का निरक्षर ओर गुलामी प्रवृति के कारन उनका धार्मिक शोसन करना आसान है |
५. आर्यो ने हमारे ऊपर अपना धर्म थोपकर ,असंगत,निर्थक ओर अविश्नीय बातों में हमें फांसा | अब हमें इन्हें छोड़कर ऐसा धर्म ग्रहण कर लेना चाहिए जो मानवता की भलाई में सहायक सिद्ध हो |
६. ब्राहमणों ने हमें शास्त्रों ओर पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है | ओर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर , ईश्वर,ओर देवि -देवताओं की रचना की |
७. सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए है , तों फिर अकेले ब्रहमान उंच व् अन्यों को नीच कैसे ठहराया जा सकता है |
८. संसार के सभी धर्म अच्छे समाज की रचना के लिए बताए जाते है , परन्तु हिंदू -आर्य , वैदिक धर्म में हम यह अंतर पाते है कि यह धर्म एकता ओर मैत्री के लिए नही है |
९. आप ब्राह्मणों के जल में फसे हो. ब्राह्मण आपको मंदिरों में खुसने नदी देते ! ओर आप इन मंदिरों में अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई लूटाते हो ! क्या कभी ब्राहमणों ने इन मंदिरों, तालाबो या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान दिया ???? ।
 १०ब्राहमणों ने अपना पेट भरने हेतु अस्तित्व , गुण ,कार्य, ज्ञान,ओर शक्ति के बिना ही देवताओं की रचना करके ओर स्वयभू *भुदेवता * बनकर हंसी मजाक का विषय बना दिया है |
११. सभी मानव एक है हमें भेदभाव रहित समाज चाहिए , हम किसी को प्रचलित सामाजिक भेदभाव के कारन अलग नही कर सकते |
१ २. हमारे देश को आजादी तभी मिल गई समझाना चाहिए जब ग्रामीण लोग, देवता ,अधर्म , जाति ओर अंधविस्वास से छुटकारा पा जायेंगे |
१ ३. आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर सन्देश ओर अंतरिक्ष यान भेज रहे है ओर हम ब्राहमणों के द्वारा श्राद्धो में परलोक में बसे अपने पूर्वजो को चावल ओर खीर भेज रहे है | क्या ये बुद्धिमानी है ???
१४. ब्राहमणों से मेरी यह विनती है कि अगर आप हमारे साथ मिलकर नही रहना चाहते तों आप भले ही जहन्नुम में जाए| कम से कम हमारी एकता के रास्ते में मुसीबते खड़ी करने से तों दूर जाओ | . ब्राहमण सदैव ही उच्च एवं श्रेष्ट बने रहने का दावा कैसे कर सकता है ?? समय बदल गया है उन्हें निचे आना होगा , तभी वे आदर से रह पायेंगे नही तों एक दिन उन्हें बलपूर्वक ओर देशाचार के अनुसार ठीक होना होगा |


 #नास्तिकता मनुष्य के लिए कोई सरल स्तिथि नहीं है,कोई भी मुर्ख अपने आप को आस्तिक कह सकता है, ईश्वर की सत्ता स्वीकारने में किसी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े साहस और दृढ विश्वास की जरुरत पड़ती है, यह स्तिथि उन्ही लोगो के लिए संभव है जिनके पास तर्क तथा बुद्धि की शक्ति हो !….. :- E V रामास्वामी नायकर(पेरियार)
”अगर देवता ही हमें निम्न जाति बनाने का मूल कारन है तों ऐसे देवता को नष्ट कर दो , अगर धर्म है तों इसे मत मानो ,अगर मनुस्मृति , गीता, या अन्य कोई पुराण आदि है तों इसको जलाकर राख कर दो | अगर ये मंदिर , तालाब, या त्यौहार है तों इनका बहिस्कार कर दो | अंत में हमारी राजनीती ऐसी करती है तों इसका खुले रूप में पर्दाफास करो |” :- रामास्वामी पेरियार
ब्राहमण आपको भगवान के नाम पर मुर्ख बनाकर अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है |ओर स्वयं आरामदायक जीवन जी रहा है, तथा तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है | देवता की प्रार्थना करने के लिए दलाली करता है | मै इस दलाली की निदा करता हू |

Thursday, 17 September 2015

बुद्धा की महिमा

लोगों का ये कहना है जो अपने को आर्ट्स पढकर वैज्ञानिक बातों को मानने से मना ही नहीं करते बल्कि दावा करते हैं कि जातक कथा बकवास हैं और भगवान बुद्ध के बत्तीस महापुरुष लक्षण बकवास हैं ।

देखिये इस स्त्री की जीभ कितनी लंबी है और भगवान बुद्ध की जीभ इतनी लंबी थी की वे अपने ही कान जीभ से छू लेते थे,
  इससे भी ज्यादा महापुरुष लक्षण से बढ़कर बुद्ध होने के बाद उनकी जिह्वा संसार के सभी प्राणियों से लंबी थी
 यह भगवान ने पौस्कर सात्ति ब्राह्मण को प्रगट की थी की वह जब 31 वां महापुरुष लक्षण ढूंढ रहा रहा तो भगवान बुद्ध ने चेतोपरिय ज्ञान  ऋद्धि से उसके मन की बात जानकर अपनी जिह्वा से अपने सोत्तों यानि कानों को स्पर्श किया और उससे भी बढ़कर अपने पूरे ललाट यानि चेहरे को कान तक अपनी जिह्वा से ढक लिया तो पौस्करसात्ति भगवान बुद्ध के चरणों में गिर कर अश्रु बहाने लगा
और उनका शिष्यत्व मांगने लगा ।

भगवान बुद्ध ने कृपा की ।।
और वो ब्रह्म लोक गामी हुए ।। 

Wednesday, 9 September 2015

बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध कौन थे

बौद्ध धर्म  के संस्थापक  महात्मा बुद्ध थे. वे 563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व तक रहे,  बुद्ध के  जन्म और मृत्यु की तिथि को चीनी पंरपरा के कैंटोन अभिलेख के आधार पर निश्चित किया गया है।  ईसाई और इस्लाम धर्म से पहले बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई थी, दोनों धर्मों  के बाद बौद्ध धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत जैसे देशों में रहते हैं ।  बौद्ध धर्म के बारे में हमें विशद ज्ञान पालि त्रिपिटक  से प्राप्त होता है। 

  1.  बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। 
  2. इन्हें एशिया का ज्योति पुंज कहा जाता है.
  3. गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में हुआ था। 
  4.  इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के राजा थे। 
  5. इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
  6. सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां मायादेवी का देहांत हो गया था। 
  7.  सिद्धार्थ की सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने उनको पाला।
  8.  सिद्धार्थ का 16 साल की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। 
  9.  इनके पुत्र का नाम राहुल था। 
  10.  सिद्धार्थ जब कपिलावस्तु की सैर के लिए निकले तो उन्होंने चार दृश्यों को देखे ;
  •  बूढ़ा व्यक्ति 
  •  एक बिमार व्यक्ति 
  •  शव (मरा  हुआ व्यक्ति )
  •  एक सन्यासी  
सांसारिक समस्याओं से दुखी होकर सिद्धार्थ ने 29 साल की आयु में घर छोड़ दिया।  जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्कमण कहा जाता है।  गृह त्याग के बाद बुद्ध ने वैशाली के आलारकलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की।  आलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरू  थे।  आलारकलाम के बाद सिद्धार्थ ने राजगीर के रूद्रकरामपुत्त से शिक्षा ली , तत्पश्चात वे भ्रमण पर निकले और  उरूवेला में सिद्धार्थ को कौण्डिन्य, वप्पा, भादिया, महानामा और अस्सागी नाम के 5 साधक मिले। 
बिना अन्न जल ग्रहण किए 6 साल की कठिन तपस्या के बाद 35 साल की आयु में वैशाख की पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के किनारे, पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ । इसके बाद से सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से विख्यात हुए।  जिस जगह उन्हें  ज्ञान प्राप्‍त हुआ उसे बोधगया के नाम से जाना गया।  बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ  में दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है।  बुद्ध ने अपने उपदेश कोशल, कौशांबी और वैशाली राज्य में पालि भाषा में दिए।  बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रीवस्ती में दिए। 


 बुद्ध की मृत्यु 80 साल की उम्र में कुशीनारा में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गई। जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है।  मल्लों ने बेहद सम्मान पूर्वक बुद्ध का अंत्येष्टि संस्कार किया।  एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर के अवशेषों को आठ भागों में बांटकर उन पर आठ स्तूपों का निर्माण कराया गया। 

 बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया।  जातक कथाएं प्रदर्शित करती हैं कि बोधिसत्व का अवतार मनुष्य रूप में भी हो सकता है और पशुओं के रूप में भी हो सकता है।  बोधिसत्व के रूप में पुनर्जन्मों की दीर्घ श्रृंखला के अंतर्गत बुद्ध ने शाक् मुनि के रूप में अपना अंतिम जन्म प्राप्त किया।  सर्वाधिक बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण गंधार शैली के अंतर्गत किया गया था।  लेकिन बुद्ध की प्रथम मूर्ति मथुरा कला  के अंतर्गत आती है ।


 बुद्ध के अनुयायी दो भागों मे विभाजित हैं। 
  •  भिक्षुक- बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जिन लोगों ने संयास लिया उन्हें भिक्षुक कहा जाता है। 
  •  उपासक- गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म अपनाने वालों को उपासक कहते हैं. इनकी न्यूनत्तम आयु 15 साल है। 

 इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे: 
  • बिंबसार 
  •  प्रसेनजित 
  •  उदयन