Friday, 27 November 2015

बाबा साहब की 22 महाप्रतिज्ञा



  • मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश को कभी ईश्वर नही मानूंगा.ना उनकी उपासना करूँगा.
  • मैं राम और कृष्ण को कभी ईश्वर नही मानूंगा और ना ही उनकी उपासना करूँगा.
  • मैं गौरी, गणपति, इत्यादि हिन्दू धर्म के किसी भी देवता को नही मानूंगा और ना उनकी उपासना करूँगा.
  • ईश्वर ने कभी अवतार धारण किया है इस पर मेरा विश्वास नही है.
  • बुद्ध विष्णु का अवतार हैं ये झूठा और शरारती प्रचार है.
  • मैं श्राद्ध पक्ष नही करूँगा और ना ही कभी पिंडदान करूँगा.
  • मैं बौद्ध धम्म के विरूद्ध ऐसा कोई भी आचरण नही करूंगा.
  • मैं कोई भी क्रिया कर्म ब्राह्मणों के हाथ से नही करवाऊंगा.
  • सभी मनुष्य मात्र समान है ऐसा मे मानता हूँ.
  • मैं समता स्थापित करने का प्रयास करूँगा.
  • मैं तथागत गौतम बुद्ध के बताये हुए अष्टांग मार्ग का पूर्ण पालन करूँगा.
  • मैं तथागत बुद्ध के बताई दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करूंगा.
  • मैं सभी प्राणी मात्र पर दया करूँगा और उनका लालन पालन करूँगा.
  • मैं चोरी नही करूँगा.
  • मैं व्याभिचार नही करूंगा.
  • मैं झूठ नही बोलूँगा.
  • मैं शराब मदिरा आदि का सेवन नही करूंगा.
  • प्रज्ञा,शील, करुणा धम्म के इन तीन तत्वों का मेल करके मे जीवन व्यतीत करूँगा.मेरे पुराने मनुष्य मात्र के उत्कर्ष में हानिकारक होने वाले और मनुष्य मात्र को असमान और नीच मानने वाले हिन्दू धर्म को त्याग करता हूँ और बुद्ध धम्म स्वीकार करता हूँ.
  • बुद्ध धम्म सध्म्म है इसका मुझे यकीन हुआ है और रहेगा.
  • आज मेरा नया जन्म हुआ है ऐसा मे मानता हूँ.
  • इसके बाद मे बुद्ध की शिक्षा के अनुसार आचरण करूँगा ऐसी प्रतिज्ञा करता हूँ.

बुद्ध प्रभात 🌺🌻🌻जय भीम !! जय भारत !!!..

Wednesday, 18 November 2015

विजय दशमी बौद्धों का पवित्र त्यौहार है, vijayadasmi is thae holy festival of buddhists

विजय दशमी बौद्धों का पवित्र त्यौहार है।

ऐतिहासिक सत्यता है कि महाराजा अशोक ने
कलिंग युद्ध के बाद हिंसा का मार्ग त्याग कर बौद्ध
धम्म अपनाने की घोषणा कर दी थी। बौद्ध बन जाने
पर वह बौद्ध स्थलों की यात्राओं पर गए। तथागत
गौतम बुद्ध के जीवन को चरितार्थ करने तथा अपने
जीवन को कृतार्थ करने के निमित्त हजारों स्तूपों
,शिलालेखों व धम्म स्तम्भों का निर्माण कराया।
सम्राट अशोक के इस धार्मिक परिवर्तन से खुश होकर
देश की जनता ने उन सभी स्मारकों को सजाया
संवारा तथा उस पर दीपोत्सव किया। यह आयोजन
हर्षोलास के साथ १० दिनों तक चलता रहा, दसवें दिन
महाराजा ने राजपरिवार के साथ पूज्य भंते
मोग्गिलिपुत्त तिष्य से धम्म दीक्षा ग्रहण की। धम्म
दीक्षा के उपरांत महाराजा ने प्रतिज्ञा की, कि
आज के बाद मैं शास्त्रों से नहीं बल्कि शांति और
अहिंसा से प्राणी मात्र के दिलों पर विजय प्राप्त
करूँगा। इसीलिए सम्पूर्ण बौद्ध जगत इसे अशोक विजय
दशमी के रूप में मनाता है।
इसे  राम और रावण कि विजय के विजय के रूप में भी मनाया जाता  है।