सम्राट अशोक के अभिलेख भाषा प्राकृत [ धम्म लिपि ]
[ शाक्य वशं मौर्य वशं के क्षत्रियों में प्रज्ञा सम्पन्न श्रीमान चंद्रगुप्त राजा हुए और उनके भाई विष्णुगुप्त ]
सम्राट अशोक के मास्की शिलालेख में अपने को शाक्य क्षत्रिय कुल का कहा है - इस प्रकार पिप्पलिवन,मोरिय गणराज्य के शाक्य-क्षत्रिय मौर्य कहलाये।
प्राचीन पालि साहित्य ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वज हिमालय की तराइ में स्थित पिप्पलियवन के मोरिय गणराज्य भगवान बुद्ध के समय शासन करते थे । भारत की सबसे प्राचीन भाषा पालि की इन गाथाओ में चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय इस प्रकार है।
[आदिच्चा नाम गोतेन, सकिया नाम जातिया। मोरियान खतियानं वसं जातं सिरिधरं। चन्द्रगुत्तो,ति पातं विसनुगुत्तो ति भतुका ततो।]
:अनुवाद
उत्तरविरत्ताकथा थेरमहिंद:अनुवादक सिद्धार्थ वर्द्धन सिंह
शाक्य वशं मौर्यवशं के क्षत्रियों में प्रज्ञा सम्पन्न श्रीमान चन्द्रगुप्त राजा हुए और उनके भाई विष्णुगुप्त । ]
मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफ़ाओं की दीवारों में अपने शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।
रुम्मिनदेई के अशोक-स्तंभ पर ख़ुदा हुआ यह लेख
भाषा प्राकृत [ धम्म लिपि ] में है।
लिप्यंतर
देवानं पियेन पियदसिन लाजिन वीसतिवसाभिसितेन
अतन आगाच महीयिते हिद बुधे जाते सक्यमुनीति
सिलाविगडभीचा कालापित सिलाथभे च उसपापिते
हिद भगवं जातेति लुंमिनिगामे उबलिके कटे
अठभागिये च
अर्थ :
देवताओं के प्रिय राजा ने (अपने) राज्याभिषेक के 20 वर्ष अवस्था बाद स्वयं आकर इस स्थान की पूजा की,
क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म हुआ था।
यहाँ पत्थर की एक दीवार बनवाई गई और पत्थर का एक स्तंभ खड़ा किया गया।
बुद्ध भगवान यहाँ जनमे थे, इसलिए लुम्बिनी ग्राम को कर से मुक्त कर दिया गया और
(पैदावार का) आठवां भाग भी (जो राज का हक था) उसी ग्राम को दे दिया गया है।
[ शाक्य वशं मौर्य वशं के क्षत्रियों में प्रज्ञा सम्पन्न श्रीमान चंद्रगुप्त राजा हुए और उनके भाई विष्णुगुप्त ]
सम्राट अशोक के मास्की शिलालेख में अपने को शाक्य क्षत्रिय कुल का कहा है - इस प्रकार पिप्पलिवन,मोरिय गणराज्य के शाक्य-क्षत्रिय मौर्य कहलाये।
प्राचीन पालि साहित्य ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वज हिमालय की तराइ में स्थित पिप्पलियवन के मोरिय गणराज्य भगवान बुद्ध के समय शासन करते थे । भारत की सबसे प्राचीन भाषा पालि की इन गाथाओ में चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय इस प्रकार है।
[आदिच्चा नाम गोतेन, सकिया नाम जातिया। मोरियान खतियानं वसं जातं सिरिधरं। चन्द्रगुत्तो,ति पातं विसनुगुत्तो ति भतुका ततो।]
:अनुवाद
उत्तरविरत्ताकथा थेरमहिंद:अनुवादक सिद्धार्थ वर्द्धन सिंह
शाक्य वशं मौर्यवशं के क्षत्रियों में प्रज्ञा सम्पन्न श्रीमान चन्द्रगुप्त राजा हुए और उनके भाई विष्णुगुप्त । ]
मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफ़ाओं की दीवारों में अपने शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।
रुम्मिनदेई के अशोक-स्तंभ पर ख़ुदा हुआ यह लेख
भाषा प्राकृत [ धम्म लिपि ] में है।
लिप्यंतर
देवानं पियेन पियदसिन लाजिन वीसतिवसाभिसितेन
अतन आगाच महीयिते हिद बुधे जाते सक्यमुनीति
सिलाविगडभीचा कालापित सिलाथभे च उसपापिते
हिद भगवं जातेति लुंमिनिगामे उबलिके कटे
अठभागिये च
अर्थ :
देवताओं के प्रिय राजा ने (अपने) राज्याभिषेक के 20 वर्ष अवस्था बाद स्वयं आकर इस स्थान की पूजा की,
क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म हुआ था।
यहाँ पत्थर की एक दीवार बनवाई गई और पत्थर का एक स्तंभ खड़ा किया गया।
बुद्ध भगवान यहाँ जनमे थे, इसलिए लुम्बिनी ग्राम को कर से मुक्त कर दिया गया और
(पैदावार का) आठवां भाग भी (जो राज का हक था) उसी ग्राम को दे दिया गया है।
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