Saturday, 27 February 2016

ओह! तो ये बात है, जिसे तुम अब तक ढो रहे हो ....दो बौद्ध भिक्षु पहाड़ी पर .....

ओह! तो ये बात है, जिसे तुम अब तक ढो रहे हो

दो बौद्ध भिक्षु पहाड़ी पर स्थित अपने मठ की ओर जा रहे थे। रास्ते में एक गहरा नाला पड़ता था। वहां नाले के किनारे एक युवती बैठी थी, जिसे नाला पार करके मठ के दूसरी ओर स्थित अपने गांव पहुंचना था, लेकिन बारिश के कारण नाले में पानी अधिक होने से युवती नाले को पार करने का साहस नहीं कर पा रही थी।भिक्षुओं में से एक ने, जो अपेक्षाकृत युवा था, युवती को अपने कंधे पर बिठाया और नाले के पार ले जाकर छोड़ दिया। युवती अपने गांव की ओर जाने वाले रास्ते पर बढ़चली और भिक्षु अपने मठ की ओर जाने वाले रास्ते पर।दूसरे भिक्षु ने युवती को अपने कंधे पर बिठा कर नाला पार कराने वाले भिक्षु से उस समय तो कुछ नहीं कहा, पर मन मारकर उसके साथ-साथ पहाड़ी पर चढ़ता रहा। मठ आ गया तो इस भिक्षु से और नहीं रहा गया।उसने अपने साथी से कहा, हमारे संप्रदाय में स्त्रीको छूने की ही नहीं, देखने की भी मना है। लेकिन तुमने तो उस युवा स्त्री को अपने हाथों से उठाकर कंधे पर बिठाया और नाला पार करवाया। यह बड़ी लज्जा की बात है।ओह! तो ये बात है, पहले भिक्षु ने कहा, पर मैं तो उसे नाला पार कराने के बाद वहीं छोड़ आया था, लेकिन लगता है कि तुम उसे अब तक ढोरहे हो। संन्यास का अर्थ किसी की सेवा या सहायता करने से विरत होना नहीं होता, बल्कि मन से वासना और विकारों का त्याग करना होता है।इस दृष्टि से उस युवती को कंधे पर बिठाकर नाला पार करा देने वाला भिक्षु ही सही अर्थों में संन्यासी है। दूसरे भिक्षु का मन तो विकार से भरा हुआ था। हम अपने मन में समाए विकारों और वासना पर नियंत्रण कर लें, तो गृहस्थ होते हुए भी संन्यासी ही हैं।संक्षेप मेंमन से यदि मनुष्य अपने विकार और वासनाएं निकाल दे तो वह एक सफल मनुष्य बन सकता है। कहा भी गया है कि मनुष्य का चरित्र ही उसका परिचय होता है।

Wednesday, 24 February 2016

सम्राट अशोक के शिलालेख

सम्राट अशोक के अभिलेख भाषा प्राकृत [ धम्म लिपि ]
[ शाक्य वशं मौर्य वशं के क्षत्रियों में प्रज्ञा सम्पन्न श्रीमान चंद्रगुप्त राजा हुए और उनके भाई विष्णुगुप्त ]

सम्राट अशोक के मास्की शिलालेख में अपने को शाक्य क्षत्रिय कुल का कहा है - इस प्रकार पिप्पलिवन,मोरिय गणराज्य के शाक्य-क्षत्रिय मौर्य कहलाये।

प्राचीन पालि साहित्य ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वज हिमालय की तराइ में स्थित पिप्पलियवन के मोरिय गणराज्य भगवान बुद्ध के समय शासन करते थे । भारत की सबसे प्राचीन भाषा पालि की इन गाथाओ में चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय इस प्रकार है।

[आदिच्चा नाम गोतेन, सकिया नाम जातिया। मोरियान खतियानं वसं जातं सिरिधरं। चन्द्रगुत्तो,ति पातं विसनुगुत्तो ति भतुका ततो।]

:अनुवाद
उत्तरविरत्ताकथा थेरमहिंद:अनुवादक सिद्धार्थ वर्द्धन सिंह
शाक्य वशं  मौर्यवशं के क्षत्रियों में प्रज्ञा सम्पन्न श्रीमान चन्द्रगुप्त राजा हुए और उनके भाई विष्णुगुप्त । ]

मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफ़ाओं की दीवारों में अपने शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।
रुम्मिनदेई के अशोक-स्तंभ पर ख़ुदा हुआ यह लेख
भाषा प्राकृत [ धम्म लिपि ] में है।

लिप्यंतर
देवानं पियेन पियदसिन लाजिन वीसतिवसाभिसितेन
अतन आगाच महीयिते हिद बुधे जाते सक्यमुनीति
सिलाविगडभीचा कालापित सिलाथभे च उसपापिते
हिद भगवं जातेति लुंमिनिगामे उबलिके कटे
अठभागिये च


अर्थ :
देवताओं के प्रिय राजा ने (अपने) राज्याभिषेक के 20  वर्ष अवस्था बाद स्वयं आकर इस स्थान की पूजा की,
क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म हुआ था।
यहाँ पत्थर की एक दीवार बनवाई गई और पत्थर का एक स्तंभ खड़ा किया गया।
बुद्ध भगवान यहाँ जनमे थे, इसलिए लुम्बिनी ग्राम को कर से मुक्त कर दिया गया और
(पैदावार का) आठवां भाग भी (जो राज का हक था) उसी ग्राम को दे दिया गया है।

Thursday, 11 February 2016

भगवान् बुद्ध के 38 महत्वपूर्ण उपदेश

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भगवान् बुद्ध के 38 महत्वपूर्ण उपदेश:-

1. मूर्खो की संगति न करना ।
2. विद्वानों की संगती करना।
3. पूज्यनीय का सम्मान करना।
4. अनुकूल स्थान पर निवास करना।
5. पुण्य आचरण का संचय करना।
6. कुशल धर्म का संकल्प करना।
7. बहुश्रुत होना, धम्मग्रन्थों का ज्ञान होना।
8. शिल्प विद्याएं सीखना ।
9. शिष्ट होना।
10. सुशिक्षित होना।
11. सुन्दर वचन बोलना।
12. माता पिता की सेवा करना।
13. पत्नी औरबच्चों की सेवा करना
14. पाप रहित कर्मो को करना ।
15. दान देना।
16. मन, वचनऔर कर्म से पुण्य का संचय करना धर्म की सेवा करना।
17. अपने बंधुओं रिश्तेदारों का आदर सत्कार करना।
18. निर्दोष कार्यों को करना।
19. मन, वचन और शरीर से पाप कर्म न करना ।
20. शराब और किसी भी तरह का नशा न करना।
21. धम्म के कार्यो में आलस्य न करना।
22. गौरव मान-मर्यादा बढ़ाने वाले कार्य करना।
23. विनम्र होना।
24. संतुष्ट रहना।
25. कृत्यज्ञ होना।
26. उचित समय पर धम्म प्रवचन सुनना।
27. क्षमाशील होना।
28. गुरुजनो के आदेश का पालन करना।
29. संतो और अच्छे लोगों का दर्शन करना।
30. उचित समय पर धर्म प्रवचन देना लोगो को धर्म बताना।
31. तप करना और लक्ष्य प्राप्ति हेतु कष्टों को भी सहना।
32. ब्रह्मचर्य पालन करना।
33. चार आर्य सत्यों को समझना।(Four Noble Truths)
34. निर्वाण का साक्षात्कार करना, निर्वाणप्राप्ति के लिए परिश्रम करना।
35. लोक में न भटकना, अपनी चेतना शांत रखना, संसार के मोह माया में न फंसना, संसारमें विचलित न होना।
36. शोक न करना।
37. राग, द्वेष और मोह की रज से दूर रहना।
38. निर्भय रहना.

Thursday, 4 February 2016

गौतम बुद्ध के राजा को उपदेश देने की घटना

मै एक अछूत कन्या हूँ।
 मेरे कुएं से पानी निकालने पर जल दूषित हो जायेगा।
एक बार वैशाली के बाहर जाते धम्म प्रचार के लिए जाते हुए गौतम बुद्ध ने देखा कि कुछ सैनिक तेजी से भागती हुयी एक लड़की का पीछा कर रहे हैं। वह डरी हुई लड़की एक कुएं के पास जाकर खड़ी हो गई। वह हांफ रही थी और प्यासी भी थी। बुद्ध ने उस बालिका को अपने पास बुलाया और कहा कि वह उनके लिए कुएं से पानी निकाले, स्वयं भी पिए और उन्हें भी पिलाये। इतनी देर में सैनिक भी वहां पहुँच गये। बुद्ध ने उन सैनिकों को हाथ के संकेत से रुकने को कहा। उनकी बात पर वह कन्या कुछ झेंपती हुई बोली ‘महाराज! मै एक अछूत कन्या हूँ। मेरे कुएं से पानी निकालने पर जल दूषित हो जायेगा।’बुद्ध ने उस से फिर कहा ‘पुत्री, बहुत जोर की प्यास लगी है, पहले तुम पानी पिलाओ। इतने में वैशाली नरेश भी वहां आ पहुंचे। उन्हें बुद्ध को नमन किया और सोने के बर्तन में केवड़े और गुलाब का सुगन्धित पानी पानी पेश किया।
 बुद्ध ने उसे लेने से इंकार कर दिया।
  बुद्ध ने एक बार फिर बालिका से अपनी बात कही। इस बार बालिका नेसाहस बटोरकर कुएं से पानी निकल कर स्वयं भी पिया और गौतम बुद्ध को भी पिलाया। पानी पीने के बाद बुद्ध ने बालिकासे भय का कारण पूछा। कन्या ने बताया मुझे संयोग से राजा के दरबार में गाने का अवसर मिला था। राजा ने मेरा गीत सुन मुझे अपने गले की माला पुरस्कार में दी। लेकिन उन्हें किसी ने बताया कि मै अछूत कन्या हूँ। यह जानते ही उन्होंने अपने सिपाहियों को मुझे कैद खाने में डाल देने का आदेश दिया। मै किसी तरह उनसे बचकर यहाँ तक पहुंची थी। 
 
इस पर बुद्ध ने कहा, सुनो राजन! 
यह कन्या अछूत नहीं है, आप अछूत हैं। जिस बालिका के मधुर कंठ से निकले गीत का आपने आनंद उठाया, उसे पुरस्कार दिया, वह अछूत हो ही नहीं सकती।
 
 गौतम बुद्ध के सामने वह राजा लज्जित ही हो सकते थे।  देने

Monday, 1 February 2016

अपने माता पिता का सम्मान करने के 35 तरीके

माता - पिता इस दुनिया में सबसे बड़ा खज़ाना हैं..!!

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1. उनकी उपस्थिति में अपने फोन को दूर रखो.
2. वे क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान दो.
3. उनकी राय स्वीकारें.
4. उनकी बातचीत में सम्मिलित हों.
5. उन्हें सम्मान के साथ देखें.
6. हमेशा उनकी प्रशंसा करें.
7. उनको अच्छा समाचार जरूर बताएँ.
8. उनके साथ बुरा समाचार साझा करने से बचें.
9. उनके दोस्तों और प्रियजनों से अच्छी तरह से बोलें.
10. उनके द्वारा किये गए अच्छे काम सदैव याद रखें.
11. वे यदि एक ही कहानी दोहरायें तो भी ऐसे सुनें जैसे पहली बार सुन रहे हो.
12. अतीत की दर्दनाक यादों को मत दोहरायें.
13. उनकी उपस्थिति में कानाफ़ूसी न करें.
14. उनके साथ तमीज़ से बैठें.
15. उनके विचारों को न तो घटिया बताये न ही उनकी आलोचना करें.
16. उनकी बात काटने से बचें.
17. उनकी उम्र का सम्मान करें.
18. उनके आसपास उनके पोते/पोतियों को अनुशासित करने अथवा मारने से बचें.
19. उनकी सलाह और निर्देश स्वीकारें.
20. उनका नेतृत्व स्वीकार करें.
21. उनके साथ ऊँची आवाज़ में बात न करें.
22. उनके आगे अथवा सामने से न चलें.
23. उनसे पहले खाने से बचें.
24. उन्हें घूरें नहीं.
25. उन्हें तब भी गौरवान्वित प्रतीत करायें जब कि वे अपने को इसके लायक न समझें.
26. उनके सामने अपने पैर करके या उनकी ओर अपनी पीठ कर के बैठने से बचें.
27. न तो उनकी बुराई करें और न ही किसी अन्य द्वारा की गई उनकी बुराई का वर्णन करें.
28. उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में शामिल करें.
29. उनकी उपस्थिति में ऊबने या अपनी थकान का प्रदर्शन न करें.
30. उनकी गलतियों अथवा अनभिज्ञता पर हँसने से बचें.
31. कहने से पहले उनके काम करें.
32. नियमित रूप से उनके पास जायें.
33. उनके साथ वार्तालाप में अपने शब्दों को ध्यान से चुनें.
34. उन्हें उसी सम्बोधन से सम्मानित करें जो वे पसन्द करते हैं.
35. अपने किसी भी विषय की अपेक्षा उन्हें प्राथमिकता दें.
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यह मेसेज हर घर तक पहुंचने मे मदद करे तो बड़ी कृपा होगी मानव जाति का उद्धार संभव है यदि ऊपर लिखी बातों को जीवन में उतार लिया तो। सबसे पहले भगवान, गुरु माता पिता ही हे हर धर्म में इस बात का उल्लेख हैं