Wednesday, 16 December 2015

सूर्यवंशी क्षत्रिय चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

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"सूर्यवंशी क्षत्रिय चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य" के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
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विज्ञात पिता के विख्यात पुत्र चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म लगभग 345 ईसा पूर्व उत्तरविहारट्टकथायं के अनुसार वैशाख,कृष्णपक्ष अष्टमी को हुआ था। प्राचीन पालि साहित्य ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वज हिमालय की तराई में स्थित पिप्पलियवन के मोरिय गणराज्य में भगवान बुद्ध के समय शासन करते थे।भारत की सबसे प्राचीन भाषा पालि की इन गाथाओ में चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय इस प्रकार है।

आदिच्चा नाम गोतेन, सकिया नाम जातिया।
मोरियान खतियानं वसंजातं सिरिधरं।
चन्दगुप्तो ति पञ्ञातं,विण्हुगुप्तोति भतुकाततो।।
(उत्तरविहारट्टकथायं-थेरमहिंद)


इसका हिंदी अर्थ यह है -\
 आदित्य-गोत्र, शाक्य-जाति,मौर्यवशं के क्षत्रियों में प्रज्ञा सम्पन्न श्रीमान चन्द्रगुप्त राजा हुए और उनके भाई विष्णुगुप्त।

आधुनिक खोजो से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता राजा चन्द्रवर्द्धन (340 ई0पू0) 34 वर्ष की अवस्था में मगध के विस्तारवादी सीमा सम्बन्धी युद्ध करते हुए मारे गये थे । इस घटना के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य की माँ धम्ममोरिया देवी, अपने पुत्र के साथ पाटलिपुत्र (पुष्पपुर) आ गयी और अपने राजवंश को गुप्त रखने के लिए संभवतः मयुर पालको के रूप में अज्ञातवास का जीवन व्यतीत करने लगी । यही चन्द्रगुप्त का शैसो काल मयूर पालको,शिकारीयों तथा ग्वालों के मध्य व्यतीत हुआ। इस प्रकार राजा चन्द्र व रानी मोरिया देवी के पुत्र को गुप्त रखने से उनका नाम चन्द्रगुप्त मौर्य ही पड़ गया। यही कारण है कि कुछ इतिहासकारों को भ्रमवश लगता है कि चन्द्रगुप्त निम्न कुल के है। बड़ा होने पर उन्होने मगध की सेना में नौकरी कर ली और अपनी योग्यता के बल पर सेनापति के पद तक जा पहुचे। 326 ईसा पूर्व में सिकन्दर की सेनाए पजाब के विभिन्न राज्यों में विध्वंशक युद्ध में व्यस्त थी। मध्य प्रदेश व विहार में नन्द वश का राजा घननन्द राज्य कर रहा था। सिकन्दर के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। मगध की जनता घनान्द के अत्याचारों से पीड़ित थी । असहाय कर भार के कारण राज्य के लोग उससे असन्तुष्ठ थे।  देश को इस समय एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो मगध सामाज्य की रक्षा तथा वृद्धि कर विदेशी आक्रमण के सकट को दूर करे उस महान व्यक्ति का नाम था-
   
    ---राजकुमार चद्रगुप्त मौर्य---

Saturday, 12 December 2015

बुद्ध का जन्म ओक्कक किस वंश में हुआ था

पाली ग्रन्थ महावंश के अनुसार- गौतम बुद्ध का जन्म ओक्कक वंश में हुआ था। इतिहासकार इसी ओक्कक का हिंदी में अनुवाद इक्ष्वाकु के नाम से करते है।


  1. ओक्कक
  2. ओक्कामुख
  3. शिविसामज्य
  4. सिंहस्र
  5. जयसेन
  6. सिंह्हनु
  7. शुद्धोदन
  8. सिद्धार्थ
  9. राहुलवंशावली  
                                        से स्पष्ट है ही कि गौतम बुद्ध ओक्कक(इक्ष्वाकु) वंश की आठवीं पीढ़ी में पैदा हुए थे। शाक्य गणराज के कुछ शाक्य भारत के वर्तमान गोरखपुर के पास पिप्लीवन में आकर बस गए थे।

 पिप्लीवन में बहुत अधिक मोर होने के कारण इस क्षेत्र को लोग मोरिय बोलने लगे।
 बाद में यही स्थान मोरिय गणराज्य बना और मोरिय गणराज्य के शाक्य वंशी मौर्य कहलाने लगे। 
ओक्कक वंशियो का एक गणराज्य कोलिय गणराज्य भी था ।
इस गणराज्य के निवासी कोलिय कहलाते थे । इन कोलियों में कुछ शाक्य और मौर्य भी सम्मिलित थे। 
ओक्कक वंशियो का एक मालव गणराज्य भी था जिसके निवासी मालव कहलाते थे।
भारत के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र से आक्रमण होता रहता था, इसलिए मौर्य सम्राटो ने अपने शूरवीर सैनिको को उत्तर पश्चिम क्षेत्र में बसाया था। ये सैनिक शाक्य, मौर्य, कोलिय, मालव आदि अनेक जनसमूह के थे।
 जाति व्यवस्था मौर्य शासनकाल के बाद आई है। 

Friday, 4 December 2015

नेपाल ने किया भारत को शर्मसार

नेपाल ने  बुद्धा एयरलाइंस

           शुरू कर फिर किया भारत को शर्मसार

                          जिस भारत  देश को विश्व में बुद्ध के देश से जाना जाता है वहाँ बुद्ध का  हाल बेहाल है । यह और कुछ नही भारत में संघी साजिस का नतीजा है ।

                 संसार के सबसे कम बौद्ध पर्यटक भारत में आते है ।जबकि बुद्ध का कार्यक्षेत्र भारत ही रहा है , इसका कारण भारत में बुद्ध की उपेक्षा है ।  नेपाल/ जापान/ चीन /थाईलैंड /बर्मा/ वियतनाम/ श्रीलंका में भारत से कही  जादा  बौद्ध पर्टयक आते है ।

       अब तो नेपाल ने बुद्ध को भी भारत से  छीन लिया है । यह भारत के लिए शर्मनाक कृत्य है ।

                     नेपाल को बुद्धा एयरलाइंस शुरू करने पर और बुद्ध के नाम /फोटो वाले रूपये और सिक्के चलने पर  बहुत बहुत साधुवाद ।   

Friday, 27 November 2015

बाबा साहब की 22 महाप्रतिज्ञा



  • मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश को कभी ईश्वर नही मानूंगा.ना उनकी उपासना करूँगा.
  • मैं राम और कृष्ण को कभी ईश्वर नही मानूंगा और ना ही उनकी उपासना करूँगा.
  • मैं गौरी, गणपति, इत्यादि हिन्दू धर्म के किसी भी देवता को नही मानूंगा और ना उनकी उपासना करूँगा.
  • ईश्वर ने कभी अवतार धारण किया है इस पर मेरा विश्वास नही है.
  • बुद्ध विष्णु का अवतार हैं ये झूठा और शरारती प्रचार है.
  • मैं श्राद्ध पक्ष नही करूँगा और ना ही कभी पिंडदान करूँगा.
  • मैं बौद्ध धम्म के विरूद्ध ऐसा कोई भी आचरण नही करूंगा.
  • मैं कोई भी क्रिया कर्म ब्राह्मणों के हाथ से नही करवाऊंगा.
  • सभी मनुष्य मात्र समान है ऐसा मे मानता हूँ.
  • मैं समता स्थापित करने का प्रयास करूँगा.
  • मैं तथागत गौतम बुद्ध के बताये हुए अष्टांग मार्ग का पूर्ण पालन करूँगा.
  • मैं तथागत बुद्ध के बताई दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करूंगा.
  • मैं सभी प्राणी मात्र पर दया करूँगा और उनका लालन पालन करूँगा.
  • मैं चोरी नही करूँगा.
  • मैं व्याभिचार नही करूंगा.
  • मैं झूठ नही बोलूँगा.
  • मैं शराब मदिरा आदि का सेवन नही करूंगा.
  • प्रज्ञा,शील, करुणा धम्म के इन तीन तत्वों का मेल करके मे जीवन व्यतीत करूँगा.मेरे पुराने मनुष्य मात्र के उत्कर्ष में हानिकारक होने वाले और मनुष्य मात्र को असमान और नीच मानने वाले हिन्दू धर्म को त्याग करता हूँ और बुद्ध धम्म स्वीकार करता हूँ.
  • बुद्ध धम्म सध्म्म है इसका मुझे यकीन हुआ है और रहेगा.
  • आज मेरा नया जन्म हुआ है ऐसा मे मानता हूँ.
  • इसके बाद मे बुद्ध की शिक्षा के अनुसार आचरण करूँगा ऐसी प्रतिज्ञा करता हूँ.

बुद्ध प्रभात 🌺🌻🌻जय भीम !! जय भारत !!!..

Wednesday, 18 November 2015

विजय दशमी बौद्धों का पवित्र त्यौहार है, vijayadasmi is thae holy festival of buddhists

विजय दशमी बौद्धों का पवित्र त्यौहार है।

ऐतिहासिक सत्यता है कि महाराजा अशोक ने
कलिंग युद्ध के बाद हिंसा का मार्ग त्याग कर बौद्ध
धम्म अपनाने की घोषणा कर दी थी। बौद्ध बन जाने
पर वह बौद्ध स्थलों की यात्राओं पर गए। तथागत
गौतम बुद्ध के जीवन को चरितार्थ करने तथा अपने
जीवन को कृतार्थ करने के निमित्त हजारों स्तूपों
,शिलालेखों व धम्म स्तम्भों का निर्माण कराया।
सम्राट अशोक के इस धार्मिक परिवर्तन से खुश होकर
देश की जनता ने उन सभी स्मारकों को सजाया
संवारा तथा उस पर दीपोत्सव किया। यह आयोजन
हर्षोलास के साथ १० दिनों तक चलता रहा, दसवें दिन
महाराजा ने राजपरिवार के साथ पूज्य भंते
मोग्गिलिपुत्त तिष्य से धम्म दीक्षा ग्रहण की। धम्म
दीक्षा के उपरांत महाराजा ने प्रतिज्ञा की, कि
आज के बाद मैं शास्त्रों से नहीं बल्कि शांति और
अहिंसा से प्राणी मात्र के दिलों पर विजय प्राप्त
करूँगा। इसीलिए सम्पूर्ण बौद्ध जगत इसे अशोक विजय
दशमी के रूप में मनाता है।
इसे  राम और रावण कि विजय के विजय के रूप में भी मनाया जाता  है।

Tuesday, 27 October 2015

तथागत बुद्धा की कृपा ब्राह्मण पर

एक समय भगवान बुद्ध श्रावस्ती में मिगारमाता के पुष्वाराम मे विहार कर रहे थे ।
 धम्म सीखने और सुनने के लिये मोग्गालन नामक ब्राहमण लेखाकार भी अकसर आता रहता था ।

 एक दिन वह जल्दी आ गया और भगवान को अकेले पाकर बोला कि उसके मन मे अकसर यह प्रशन उठता है कि भगवान के पास जो लोग आते हैं उनमे से कुछ परम ज्ञान को उपलब्ध होते हैं लेकिन कुछ लोग जो नजदीक होते हुये भी इस सुख की प्राप्ति नही कर पाते हैं ।
 तो भगवन , आप जैसा अदभुद शिक्षक और पथपदर्शक होते हुये भी कुछ को निर्वाण सुख प्राप्त होता है और कुछ को नही ? तो भगवन , आप करुणा से ही आप सबको निर्वाण सुख दे कर भवसागर से मुक्ति क्यों नही प्रदान कर देते ।

बुद्ध ने मोग्गालन से पूछा , ” ब्राहमण , मै तुमको इस प्रशन का उत्तर दूगाँ , लेकिन पहले तुमको जैसा लगे इस प्रशन का उत्तर दो । ब्राहमण , “यह बताओ कि क्या तुम राजगृह आने – जाने का मार्ग अच्छी तरह से जानते हो ? ”

मोग्गालन मे कहा , ” गौतम ! मै निशचय ही राजगृह का आने – जाने का मार्ग अच्छी तरह से जानता हूँ । ”

” जब कोई एक आदमी आता है और राजगृह का मार्ग पूछता है लेकिन उसे छोड्कर वह अलग मार्ग पकड लेता है , वह पूर्व की बजाय पशिचम मे चल देता है ।

तब एक दूसरा आदमी आता है और वह भी रास्ता पूछता है और तुम उसे उसे भी ठीक ठाक वैसे ही रास्ता बताते हो जैसा पहले क बता था और वह भी तुम्हारे बताये रास्ते पर चलता है औए सकुशल राजगृह पहुँच जाता है ”
ब्राहमण बोला , ” तो मै क्या करुँ , मेरा काम रास्ता बता देना है । ” 

भगवान बुद्ध बोले , ” तो ब्राहमण , मै भी क्या करुँ , तथागत का काम भी केवल मार्ग बताना होता है । ”

Saturday, 10 October 2015

भगवान बुद्ध का जीवन दुनिया का एक रहस्य

बुद्ध हैं अंतिम सत्य
एस धम्मो सनंतनो !!
अर्थात यही है सनातन धर्म।  

भगवान बुद्ध दुनिया का एक रहस्य हैं। भगवान तो बहुतहुए, लेकिन बुद्ध ने चेतना के जिस शिखर को छुआ है वैसा किसी और ने नहीं। बुद्ध का पूरा जीवन सत्य की खोज और निर्वाण को पा लेने में ही लग गया। उन्होंने मानव मनोविज्ञान और दुख के हर पहलू पर कहा और उसके समाधान बताए।यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना
किसी और ने नहीं। धरती पर अभी तक ऐसा कोई नहीं हुआ जो बुद्ध के बराबर कह गया। सैंकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। जिसने बुद्ध को पड़ा और समझा वह भीक्षु हुए बगैर बच नहीं सकता।

बुद्ध का रास्ता दुख से निजात पाकर निर्वाण अर्थात शाश्वत आनंद में स्थित हो जाने का रास्ता है। बुद्ध का जन्म किसी
राष्ट्र, धर्म या प्रांत की क्रांति नहीं है बल्कि बुद्ध के जन्म से व्यवस्थित धर्म के मार्ग पर पहली बार कोई वैश्विक क्रांति हुई है। बुद्ध से पहले धर्म, योग और ध्यान सिर्फ दार्शनिकों का विरोधाभाषिक विज्ञान ही था। काशी या कांची में बैठकर लोग माथाफोड़ी करते रहते थे।पश्चिम के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध और योग को पिछले कुछ वर्षों से बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेकों बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में पश्चिमी जगत की तादाद बड़ी है। सभी अब यह जानने लगे हैं कि पश्चिमी धर्मों में जो बाते हैं वे बौद्ध धर्म से ही ली गई है, क्योंकि बौद्ध धर्म ईसा मसीह से 500 साल पूर्व पूरे विश्व में फैल चुका था। दुनिया का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहाँ बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। दुनिया भर के हर इलाके से खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है। दुनिया की सर्वाधिक प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है।उन मुल्कों के मस्तिष्क में शांति, बुद्धि और जागरूकता नहीं है जिन्होंने बुद्ध को अपने मुल्क से खदेड़ दिया है, भविष्य में भी कभी नहीं रहेगी। शांति, बुद्धि और जागरूकता के बगैरविश्व का कोई भविष्य नहीं है, इसीलिए विद्वानों द्वारा कहा जाता रहा है

 "बुद्ध ही है दुनिया का भविष्य,वही है अंतिम दार्शनिक सत्य। "

''बौद्ध धर्म को सिर्फ दो शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है- अभ्यास और जागरूकता।''
- दलाई लामा      
  एस धम्मो सनंतनो !!
अर्थात यही है सनातन धर्म।

 बुद्ध का मार्ग ही सच्चे अर्थों में धर्म का मार्ग है। दोनों तरह की अतियों से अलग एकदम स्पष्ट और साफ। जिन्होंने इसे नहीं जाना उन्होंने कुछ नहीं जाना। बुद्ध को महात्मा या स्वामी कहने वाले उन्हें कतई नहीं जानते। बुद्ध सिर्फ बुद्ध जैसे हैं।हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लिए बुद्ध का होना अर्थात धर्म का होना है। बुद्ध इस भारत की आत्मा हैं। बुद्ध को जानने से भारत भी जाना हुआ माना जाएगा। बुद्ध को जानना अर्थात धर्म को जानना है।

मैत्रेय बुद्ध :

ओशो की एक किताब अनुसार भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं 'मैत्रेय' से पुन: जन्म लूँगा। तब से अब तक 2500 साल बीत गए। कहा जाता है कि बुद्ध ने इस बीच कई बार जन्म लेने का प्रयास किया, लेकिन कुछ कारण ऐसे बने कि वे जन्म नहीं ले पाए। अंतत: थियोसॉफिकल सोसाइटी ने जे. कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के लिए सारे इंतजाम किए थे, लेकिन वह प्रयास भी असफल सिद्ध हुआ। अंतत: ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी थी।


बुद्ध दर्शन के मुख्य तत्व : चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएँ, अनात्मवाद और निर्वाण। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटकों का एक भाग है धम्मपद। प्रत्येक व्यक्ति को तथागत बुद्ध के बारे में जानना चाहिए।
रजनीश ओशो

Sunday, 20 September 2015

पेरियार वाणी

📢 पेरियार वाणी 📢


1. उन देवताओ को नष्ट कर दो जो तुम्हे शुद्र कहे , उन पुराणों ओर इतिहास को ध्वस्त कर दो , जो देवता को शक्ति प्रदान करते है | उस देवता कि पूजा करो जो वास्तव में दयालु भला ओर बौद्धगम्य है |
२. ब्राहमणों के पैरों में क्यों गिरना ? क्या ये मंदिर है ? क्या ये त्यौहार है ? नही , ये सब कुछ भी नही है | हमें बुद्धिमान व्यक्ति कि तरह व्यवहार करना चाहिए यही प्रार्थना का सार है |
३. अगर देवता ही हमें निम्न जाति बनाने का मूल कारन है तों ऐसे देवता को नष्ट कर दो , अगर धर्म है तों इसे मत मानो ,अगर मनुस्मृति , गीता, या अन्य कोई पुराण आदि है तों इसको जलाकर राख कर दो | अगर ये मंदिर , तालाब, या त्यौहार है तों इनका बहिस्कार कर दो | अंत में हमारी राजनीती ऐसी करती है तों इसका खुले रूप में पर्दाफास करो |
४. संसार का अवलोकन करने पर पता चलता है की भारत जितने धर्म ओर मत मतान्तर कही भी नही है | ओर यही नही , बल्कि इतने धर्मांतरण (धर्म परिवर्तन ) दूसरी जगह कही भी नही हुए है ? इसका मूल कारण भारतीयों का निरक्षर ओर गुलामी प्रवृति के कारन उनका धार्मिक शोसन करना आसान है |
५. आर्यो ने हमारे ऊपर अपना धर्म थोपकर ,असंगत,निर्थक ओर अविश्नीय बातों में हमें फांसा | अब हमें इन्हें छोड़कर ऐसा धर्म ग्रहण कर लेना चाहिए जो मानवता की भलाई में सहायक सिद्ध हो |
६. ब्राहमणों ने हमें शास्त्रों ओर पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है | ओर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर , ईश्वर,ओर देवि -देवताओं की रचना की |
७. सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए है , तों फिर अकेले ब्रहमान उंच व् अन्यों को नीच कैसे ठहराया जा सकता है |
८. संसार के सभी धर्म अच्छे समाज की रचना के लिए बताए जाते है , परन्तु हिंदू -आर्य , वैदिक धर्म में हम यह अंतर पाते है कि यह धर्म एकता ओर मैत्री के लिए नही है |
९. आप ब्राह्मणों के जल में फसे हो. ब्राह्मण आपको मंदिरों में खुसने नदी देते ! ओर आप इन मंदिरों में अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई लूटाते हो ! क्या कभी ब्राहमणों ने इन मंदिरों, तालाबो या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान दिया ???? ।
 १०ब्राहमणों ने अपना पेट भरने हेतु अस्तित्व , गुण ,कार्य, ज्ञान,ओर शक्ति के बिना ही देवताओं की रचना करके ओर स्वयभू *भुदेवता * बनकर हंसी मजाक का विषय बना दिया है |
११. सभी मानव एक है हमें भेदभाव रहित समाज चाहिए , हम किसी को प्रचलित सामाजिक भेदभाव के कारन अलग नही कर सकते |
१ २. हमारे देश को आजादी तभी मिल गई समझाना चाहिए जब ग्रामीण लोग, देवता ,अधर्म , जाति ओर अंधविस्वास से छुटकारा पा जायेंगे |
१ ३. आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर सन्देश ओर अंतरिक्ष यान भेज रहे है ओर हम ब्राहमणों के द्वारा श्राद्धो में परलोक में बसे अपने पूर्वजो को चावल ओर खीर भेज रहे है | क्या ये बुद्धिमानी है ???
१४. ब्राहमणों से मेरी यह विनती है कि अगर आप हमारे साथ मिलकर नही रहना चाहते तों आप भले ही जहन्नुम में जाए| कम से कम हमारी एकता के रास्ते में मुसीबते खड़ी करने से तों दूर जाओ | . ब्राहमण सदैव ही उच्च एवं श्रेष्ट बने रहने का दावा कैसे कर सकता है ?? समय बदल गया है उन्हें निचे आना होगा , तभी वे आदर से रह पायेंगे नही तों एक दिन उन्हें बलपूर्वक ओर देशाचार के अनुसार ठीक होना होगा |


 #नास्तिकता मनुष्य के लिए कोई सरल स्तिथि नहीं है,कोई भी मुर्ख अपने आप को आस्तिक कह सकता है, ईश्वर की सत्ता स्वीकारने में किसी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े साहस और दृढ विश्वास की जरुरत पड़ती है, यह स्तिथि उन्ही लोगो के लिए संभव है जिनके पास तर्क तथा बुद्धि की शक्ति हो !….. :- E V रामास्वामी नायकर(पेरियार)
”अगर देवता ही हमें निम्न जाति बनाने का मूल कारन है तों ऐसे देवता को नष्ट कर दो , अगर धर्म है तों इसे मत मानो ,अगर मनुस्मृति , गीता, या अन्य कोई पुराण आदि है तों इसको जलाकर राख कर दो | अगर ये मंदिर , तालाब, या त्यौहार है तों इनका बहिस्कार कर दो | अंत में हमारी राजनीती ऐसी करती है तों इसका खुले रूप में पर्दाफास करो |” :- रामास्वामी पेरियार
ब्राहमण आपको भगवान के नाम पर मुर्ख बनाकर अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है |ओर स्वयं आरामदायक जीवन जी रहा है, तथा तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है | देवता की प्रार्थना करने के लिए दलाली करता है | मै इस दलाली की निदा करता हू |

Thursday, 17 September 2015

बुद्धा की महिमा

लोगों का ये कहना है जो अपने को आर्ट्स पढकर वैज्ञानिक बातों को मानने से मना ही नहीं करते बल्कि दावा करते हैं कि जातक कथा बकवास हैं और भगवान बुद्ध के बत्तीस महापुरुष लक्षण बकवास हैं ।

देखिये इस स्त्री की जीभ कितनी लंबी है और भगवान बुद्ध की जीभ इतनी लंबी थी की वे अपने ही कान जीभ से छू लेते थे,
  इससे भी ज्यादा महापुरुष लक्षण से बढ़कर बुद्ध होने के बाद उनकी जिह्वा संसार के सभी प्राणियों से लंबी थी
 यह भगवान ने पौस्कर सात्ति ब्राह्मण को प्रगट की थी की वह जब 31 वां महापुरुष लक्षण ढूंढ रहा रहा तो भगवान बुद्ध ने चेतोपरिय ज्ञान  ऋद्धि से उसके मन की बात जानकर अपनी जिह्वा से अपने सोत्तों यानि कानों को स्पर्श किया और उससे भी बढ़कर अपने पूरे ललाट यानि चेहरे को कान तक अपनी जिह्वा से ढक लिया तो पौस्करसात्ति भगवान बुद्ध के चरणों में गिर कर अश्रु बहाने लगा
और उनका शिष्यत्व मांगने लगा ।

भगवान बुद्ध ने कृपा की ।।
और वो ब्रह्म लोक गामी हुए ।। 

Wednesday, 9 September 2015

बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध कौन थे

बौद्ध धर्म  के संस्थापक  महात्मा बुद्ध थे. वे 563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व तक रहे,  बुद्ध के  जन्म और मृत्यु की तिथि को चीनी पंरपरा के कैंटोन अभिलेख के आधार पर निश्चित किया गया है।  ईसाई और इस्लाम धर्म से पहले बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई थी, दोनों धर्मों  के बाद बौद्ध धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत जैसे देशों में रहते हैं ।  बौद्ध धर्म के बारे में हमें विशद ज्ञान पालि त्रिपिटक  से प्राप्त होता है। 

  1.  बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। 
  2. इन्हें एशिया का ज्योति पुंज कहा जाता है.
  3. गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में हुआ था। 
  4.  इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के राजा थे। 
  5. इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
  6. सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां मायादेवी का देहांत हो गया था। 
  7.  सिद्धार्थ की सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने उनको पाला।
  8.  सिद्धार्थ का 16 साल की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। 
  9.  इनके पुत्र का नाम राहुल था। 
  10.  सिद्धार्थ जब कपिलावस्तु की सैर के लिए निकले तो उन्होंने चार दृश्यों को देखे ;
  •  बूढ़ा व्यक्ति 
  •  एक बिमार व्यक्ति 
  •  शव (मरा  हुआ व्यक्ति )
  •  एक सन्यासी  
सांसारिक समस्याओं से दुखी होकर सिद्धार्थ ने 29 साल की आयु में घर छोड़ दिया।  जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्कमण कहा जाता है।  गृह त्याग के बाद बुद्ध ने वैशाली के आलारकलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की।  आलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरू  थे।  आलारकलाम के बाद सिद्धार्थ ने राजगीर के रूद्रकरामपुत्त से शिक्षा ली , तत्पश्चात वे भ्रमण पर निकले और  उरूवेला में सिद्धार्थ को कौण्डिन्य, वप्पा, भादिया, महानामा और अस्सागी नाम के 5 साधक मिले। 
बिना अन्न जल ग्रहण किए 6 साल की कठिन तपस्या के बाद 35 साल की आयु में वैशाख की पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के किनारे, पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ । इसके बाद से सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से विख्यात हुए।  जिस जगह उन्हें  ज्ञान प्राप्‍त हुआ उसे बोधगया के नाम से जाना गया।  बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ  में दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है।  बुद्ध ने अपने उपदेश कोशल, कौशांबी और वैशाली राज्य में पालि भाषा में दिए।  बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रीवस्ती में दिए। 


 बुद्ध की मृत्यु 80 साल की उम्र में कुशीनारा में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गई। जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है।  मल्लों ने बेहद सम्मान पूर्वक बुद्ध का अंत्येष्टि संस्कार किया।  एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर के अवशेषों को आठ भागों में बांटकर उन पर आठ स्तूपों का निर्माण कराया गया। 

 बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया।  जातक कथाएं प्रदर्शित करती हैं कि बोधिसत्व का अवतार मनुष्य रूप में भी हो सकता है और पशुओं के रूप में भी हो सकता है।  बोधिसत्व के रूप में पुनर्जन्मों की दीर्घ श्रृंखला के अंतर्गत बुद्ध ने शाक् मुनि के रूप में अपना अंतिम जन्म प्राप्त किया।  सर्वाधिक बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण गंधार शैली के अंतर्गत किया गया था।  लेकिन बुद्ध की प्रथम मूर्ति मथुरा कला  के अंतर्गत आती है ।


 बुद्ध के अनुयायी दो भागों मे विभाजित हैं। 
  •  भिक्षुक- बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जिन लोगों ने संयास लिया उन्हें भिक्षुक कहा जाता है। 
  •  उपासक- गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म अपनाने वालों को उपासक कहते हैं. इनकी न्यूनत्तम आयु 15 साल है। 

 इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे: 
  • बिंबसार 
  •  प्रसेनजित 
  •  उदयन

Saturday, 1 August 2015

महावीर और बुद्ध ने कहा था , mahaveer and buddha says

महावीर और गौतम बुद्ध ऐसे संत हुए , जिन्होंने कहा- सोचो।शंका करो। प्रश्न करो।तब सत्य को पहचानो। जरूरी नहीं है कि वही शाश्वत सत्य है ,जो कभी किसी ने लिख दिया था।

भागवान बुद्ध ने कहा है :- “किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये सदियों से चली आ रही हैं, किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये हमारे बुजुर्गो ने कही हैं,किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये हमारे लोगो ने कही हैं,किसी चीज को मानने से पहले यह सोचो की क्या ये सही हैं,किसी चीज को मानने से पहले ये सोचो की क्या इससे आप का विकास संभव है, किसी चीज को मानने से पहले उसको बुद्धि की कसोटी पर कसोऔर आप को अच्छा लगे तो ही मानो नहीं तो मत मानो…”

ये संत वैज्ञानिक दृष्टि सम्पन्न थे। और जब तक इन संतो के विचारों का प्रभाव रहा तब तक विज्ञान  की उन्नति भारत में हुई। भौतिक और रासायनिक विज्ञान  की शोध हुई। चिकित्सा विज्ञान की शोध हुई। नागार्जुन हुए , बाणभट्ट हुए।

इसके बाद लगभग डेढ शताब्दी में भारत के बडे से बडे दिमाग ने यही काम किया कि सोचते रहे- ईश्वर एक है या दो है या अनेक है, है तो सूक्ष्म है या स्थूल है। आत्मा क्या है,  परमात्मा क्या है।इसके साथ ही केवल काव्य रचना।
विज्ञान नदारद। गल्ला कम तौलंगे , मगर द्वैतवाद , अद्वैतवाद , मुक्ती और पुनर्जन्म के वारे में बडे परेशान रहेंगे। कपडा कम नापते है , दाम ज्यादा लेगें , पर पंच-आभूषण के बारे में बडे जागृत रहेगें।

झूठे अध्यात्म ने इस देश को दुनिया में तारीफ दिलवायी , पर मनुष्य को मार डाला व हर डाला।

Wednesday, 17 June 2015

जनश्रुतियों के आधार पर अशोक का काल

★★जनश्रुतियों के आधार पर अशोक का कालक्रम★★

चक्रवर्ती सम्राट अशोक भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है, जिसकी तुलना विश्व में किसी भी सम्राट से नहीं की जा सकती. एक विजेता, दार्शनिक एवं प्रजापालक शासक के रूप में उसका नाम अमर रहेगा. जो त्याग एवं कार्य उन्होंने किये वैसा अन्य कोई नहीं कर सका. चक्रवर्ती सम्राट अशोका एक आदर्श सम्राट थे. इतिहास में अगर हम देखे तो उनके जैसा निडर सम्राट ना कभी हुआ ना ही कभी होंगा. उनके रहते मौर्य साम्राज्य पर कभी कोई विपत्ति नहीं आई.

Full Name – अशोक बिंदुसार मौर्य.
Birth – ईसा पूर्व 294.
Birth Place – पाटलीपुत्र
Father – राजा बिंदुसार
Mother: सुभद्रांगी /रानी धर्मा

तिथि विवरण
  • ईसा पूर्व 304 अशोक का जन्म (अशोक के सबसे बड़े पुत्र की जन्मतिथि के आधार पर अनुमान कर)
  • ईसा पूर्व 286 अशोक के पिता बिंदुसार ने (18 वर्ष की उम्र में) अशोक को उज्जैन का वाइसराय बनाकर भेजा।
  • ईसा पूर्व 286 वेदिसा (बेसनगर, भिलसा) की देवी से अशोक का विवाह।
  • ईसा पूर्व 284 अशोक के ज्येष्ठ पुत्र महेंद्र का जन्म।
  • ईसा पूर्व 282 अशोक की सबसे बड़ी पुत्री संघमित्रा का जन्म।
  • ईसा पूर्व 274 उत्तराधिकार के लिए युद्ध।     युवराज सुमन की मृत्यु।                                              अशोक का सिंहासन पर अधिकार।      सुमन की मृत्यु के बाद उसके बेटे निग्रोध का जन्म।
  • ईसा पूर्व 270 अशोक का राज्यभिषेक
  • ईसा पूर्व 270-266 अशोक का छोटा भाई तिस्स उपराज बना।
  • ईसा पूर्व 268 संघमित्रा का अग्निब्रह्मा से विवाह।
  • ईसा पूर्व 267 संघमित्रा के पुत्र सुमन का जन्म ॥
  • ईसा पूर्व 266 निग्रोध द्वारा अशोक का बौद्ध धर्म में परिवर्तन। उस समय निग्रोध केवल सात वर्ष का था। यह तिथि बड़े महत्व की है क्योंकि
(क) इससे पता चलता है कि महावंश में उल्लिखित तिथियाँ उसके अभिषेक से गिनी गई हैं न कि उसके राज्य पाने की तिथि से॥
(ख) इससे एक अतिरिक्त प्रमाण इस बात का मिलता है कि अशोक के राज्य पाने की तिथि सही है, और इससे लघु चट्टान लेख 1 में अशोक के बौद्ध उपासक बनने की जो तिथि दी है उसकी पुष्टि होती है।

अशोक ने अपने छोटे भाई और युवराज तिस्स को बौद्ध बनाया।
तिस्स को आचार्य महाधर्मरक्षित ने दीक्षा दी।
अशोक के भागिनेय व जामाता अग्निब्रह्मा को बौद्ध धर्म की दीक्षा।
महेंद्र की तिस्स के स्थान पर उपराज पद पर (उसकी 18 वर्ष की उम्र में) नियुक्ति।


  • ईसा पूर्व 266-263 अशोक ने विहार व चैत्य बनवाये।
  • ईसा पूर्व 264 थेर महादेव ने महेंद्र को भिक्षु बनाया। मज्झंतिक ने कंमवाचं पूरा किया। मोग्गलिपुत्त तिस्स ने महेंद्र को पुन: दीक्षा दी और वह उसका उपाध्याय बना।  आचार्या आयुपाला और उपाध्याया धर्मपाला ने संघमित्रा को भिक्षुणी बनाया।  अशोक पच्चयदायक से उन्नति कर सासनदायक बना। 
  • ईसा पूर्व 263- कुणाल का अशोक की पत्नी पद्मावती के गर्भ से जन्म। 
  • ईसा पूर्व 262 थेर तिस्स व सुमित्त की मृत्यु। संघ में अवांछित भिक्षु-भिक्षुणियों की वृद्धि जिससे उदासीन होकर मोग्गलिपुत्त तिस्स संघ से विरक्त रहने लगा 
  • ईसा पूर्व 262-254 महेंद्र संघ का अध्यक्ष रहा। अशोक ने मोग्गलिपुत्त तिस्स को बुला भेजा। तिस्स ने उसे संबुद्ध के सिद्धांत का अध्यापन किया। तिस्स को अध्यक्षता में संघ की बैठक। अशोक ने अपधर्मी भिक्षुओं को संघ से निकाल बाहर किया।
  • ईसा पूर्व 260-250 अशोक द्वारा बौद्ध तीर्थों की यात्रा का संभावित काल जिसके अंत में उसने दिव्यावदान 27 के अनुसार धर्मराजिक को पूरा कराया। दिव्यावदान के अनुसार उपगुप्त अशोक को सबसे पहले लुंबिनी वन ले गया फिर उसने उसे बोधिमूल की यात्रा करायी। चट्टान लेख 8 में ई. पू. 260 में अशोक के संबोधि के दर्शन का उल्लेख हैं। रुम्मिनदीई स्तंभ लेख ई. पू. 250 में उसकी लुंबिनी यात्रा का उल्लेख करता है।
  • ईसा पूर्व 253 तृतीय बौद्ध संगीति जिसके अध्यक्ष मोग्गलिपुत्त तुस्स थे। विभिन्न देशों में दूतों का भेजना।
  • ईसा पूर्व 252 लंका जाते हुए महेंद्र ने विदिशा में अपनी माता देवी के दर्शन किये। उसे भिक्षु बने 12 वर्ष बीत चुके थे।
  • ईसा पूर्व 240 अशोक की प्रियपत्नी और संबुद्ध की द्दढ़ विश्वासिनी असंघिमित्रा की मृत्यु।
  • ईसा पूर्व 236 तिष्यरक्षिता अग्रमहिषी बनी।
  • ईसा पूर्व 235 तक्षशिला में विद्रोह। कुणाल वहाँ वाइसराय बनाकर भेजा गया।
  • ईसा पूर्व 233 तिष्यरक्षिता का बोधि-वृक्ष से द्वेष, जिसे उसने नष्ट करने की चेष्टा की।
  • ईसा पूर्व 232 शासन के अड़तीसवें वर्ष में अशोक की मृत्यु।
★★★★★★★★★
नमो बुद्धाय.
जय अशोक महान
जय भारत
★★★★★★★★★

Wednesday, 13 May 2015

बुद्ध जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रशन एवं उनके उत्तर। .....

मंगलमय धम्मसकाळ !!
बुद्ध धम्म के बुनियादी सवाल जवाब।

बुद्ध जीवन  से  जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रशन एवं  उनके उत्तर। .....

प्रशन:-1. बुद्ध  का  शुरू वाला  नाम क्या  था ?

उत्तर :-सिद्धार्थ   उनका  घर  का  नाम  था! गौतम  उनका  कुल  गोत्र था!इस तरह उनका  शुरू वाला   नाम  सिद्धार्थ  गौतम बना!
प्रशन:-2 वह कौन  थे?

उत्तर:-  वह कपिलवस्तु देश  के राजकुमार  थे!
प्रशन 3.राज- कुमार  किसे  कहते  हैं ?

उत्तर :- राजा   के  पुत्र को  राजकुमार  कहते  हैं!


प्रशन:- 4 वह किस  वर्ण  से  थे?

उत्तर :-क्षत्रिय वर्ण  से!


प्रशन:-5 गौतम  के  पित्ता का नाम  क्या  था ?

उत्तर :-शुद्धोधन

प्रशन6 :-उनकी  माँ  का  नाम क्या था?

उत्तर :- महामाया


प्रशन:-7 . राजा  शुदोधन किस  पर  राज  करते  थे ?

उत्तर ;- शाक्यों   पर
!

प्रशन :-8 कपिलवस्तु  किस राज्य में है?

उत्तर :- उत्तर प्रदेश  में वाराणसी नगर  से  लगभग  एक  सौ  मील  नेपाल की  तराई  में पड़ता है!


प्रशन:-9 कपिलवस्तु देश  किस  नदी के किनारे  पर  स्थित था ?

उत्तर:-रोहिणी  नदी के किनारे पर  !


प्रशन:-10 राजकुमार सिद्धार्थ का  जन्म कब हुआ?

उत्तर:-सन 623 ईसापूर्व
!

प्रशन:-11 जन्म स्थान?

उत्तर:- लुम्बिनी  [जंगल में !]


प्रशन 12:-जंगल  में ही क्यों?

उत्तर :-उनको  सुसराल  से  मायके  पालकी  में  रख कर ले  जाया  जा  रहा था  ताकि परम्परा  के  अनुसार   बच्चा  उनके  मायके  में  पैदा  हो ,लेकिन जंगल  के  रास्ते  में ही बच्चा  पैदा हो  गया!


प्रशन:-13 राजकुमार  के  बारे  में क्या कहा  गया था ?

उत्तर:- अगर राजकुमार राज  करे गा  तो उसका  शानदार  राजा  होगा! अगर वह  घर   त्याग  करेगा तो  दुनिया  को  दुःख  से  निज़ात का  रास्ता बताये गा!


प्रशन:-14 उनके  पिताजी क्या   चाहते  थे?

उत्तर: वह चाहते थे वह बड़ा  हो कर  राज  करे,घर  न  त्यागे!


प्रशन:-15 वह घर  न त्यागे  , इसलिये उनके  पित्ता ने क्या किया   ?

उत्तर:- उनके  पित्ता  के  कहने  पर   तीन  बङे SEASONS मौसम के  मुताबिक सर्दी ,गर्मी  और वर्षा के  अनुरूप नौ  मंजिला ,पांच मंजिला और तीन  मंजिला  राज  महल  तामीर  किए!


प्रशन:-16 इन महलों  को  किस  तरह  सज़ाया गया  था?

उत्तर:- इन  तीनों महलों  के  इर्द  गिर्द  खुश्बूदार  फूलों  के  बाग़  बनाये थे! जिन में  मोरों  की  कूक  गूंजती  रहती थी!

प्रशन:-17 उनकी शादी  कितने साल  में  हुई? और  उनके बास्ते और क्या  इंतजाम  थे ?

उत्तर:-उनकी  शादी  16  साल  की उम्र में  हुई! नाच  और  संगीत  में माहिर महिलाऐं  लगातार  इन की  सेवा में  लगी रहती थीं!

प्रशन:-18 उनकी  पत्त्नी का  नाम  बताएँ?

उत्तर :-यशोधरा!


प्रशन :-19 राजकुमारी  यशोधरा को  गौतम ने    किस तरह  प्राप्त किया?

उत्तर:- स्वयंवर हुआ,  उस  में  सिद्धार्थ प्रथम  आये  और  सभी राजकुमारियों में  से  राजकुमार ने  यशोधरा को  चुन  कर  शादी  की !


प्रशन :-20 यशोधरा  को  जब  बच्चा हुआ  तो  उस  का नाम  किस  ने रखा  और  इस नाम  का किया  अर्थ  होता है ?

उत्तर :- बच्चे  का  नाम उनके  पिता सिद्धार्थ   गौतम  ने  राहुल  रखा और  इस  का अर्थ  होता  है जंजीर


प्रशन:-20 इतनी  मज़ेबाली जिन्दगी  कया  सिद्धार्थ  को अच्छी लगती  थी?

उतर:- नहीं !


प्रशन:21  सिद्धार्थ   की  शिक्षा  के  बारे में  बताएँ?

उत्तर:-उन्हें अच्छे  शिक्षक पढ़ाते थे!उनकी  तेज  बुद्धि  थी, ज्यादा  देर  पढाई किये  बिना ही  बह  कलाओं और  बिज्ञान  को समझ कर  अपने  दिमाग में  बिठा लेते  थे!


प्रशन:-22 कया  सिद्धार्थ शानदार  महलों  में  ही  रह कर  बुद्ध  बने ?

उत्तर:-नहीं ,वह  29 साल  की उम्र  में  ही  शाही  शान  और  भोग विलास  को  त्याग  कर  दुनिया  के  दुखों  को   दूर  करने  के  तरीके  को तलाशने  के लिये  घर  से  निकल   गये  थे!


प्रशन:-23 दुनिया  में  दुःख ही  दुःख  है  इसका सब से  बड़ा  अनुभव उन्हें कहाँ  हुआ?

उत्तर:- 21 साल  की उम्र में वह  शाक्य संघ  के  मेम्बर  बने! शाक्य राज्य के साथ  लगता  हुआ  एक  दूसरा कोल़ियों का  राज्य  था ?  दोनों राज्यों के बीच  रोहिणी नाम की  नदी बहती  थी? शक्य और  कोली  राज्यों के लोग  इस  नदी  के  पानी से  अपने  खेत  को  पानी  लगाते थे!हर  फसल  पर  उनका  आपस  में  झगङा होता  था  कि रोहिणी  नदी  के पानी का  पहले  और  कितना  उपयोग  कौन  करेगा! जिस  साल  गौतम की उम्र  29 साल की थी रोहिणी  के  पानी को  लेकर  शाक्य और  कोली पक्षों  के खेत कामगारों  में  झगङा  हो गया! दोनों  पक्षों  ने  चोट  खाई ! शाक्य  लोगों  ने  सोचा  कि झगङे  का  फैसला  जंग  से सदा  के लिए कर लिया  जाये !गौतम  ने  इस  फैसले  का  विरोध  किया! इस विरोध के  लिये  गौतम को  नीचे  दी गईं तीन सज़ाओं  में से  एक  को  चुनने  के  लिए  कहा गया!


1.वह सेना  में  भरती होकर  युद्ध  में भाग  ले सकता  था!

2.  वह फांसी  पर  लटकना या  देश  से  निकाल दिया  जाना  स्वीकार  कर सकता था!

3. वह अपने  परिवार का  सामाजिक  बहिष्कार और  उनके  खेतों  की  जब्ती के लिये  राज़ी  हो  सकता  था !गौतम ने  दूसरी  सज़ा  के  लिये  प्रार्थना  की! इस  तरह  उनको  घर  से जाना  पड़ा! यह  एक महान त्याग  था !


प्रशन:-24 जब उनको  घर  से निकलना  पड़ा  तो  उनको क्या क्या त्यागना  पड़ा?

उत्तर :-उन्हों ने  अपने  परिवार  से   अनुमति  लेकर   अपने परिवार को  , सुन्दर  महलों को  ,धन –जायदाद और  सुखों को  ,अपने कोमल  बिस्तरों ,सुन्दर  कपड़ों ,अच्छे  खानों  और उन्हें अपने  सुन्दर राज्य  को भी  त्यागना पड़ा!


प्रशन :-25 क्या दुनिया में    किसी और  ने  ऐसा  त्याग  हमेशा  के लिए किया ?

उत्तर :-नहीं, ऐसा  कोई  नहीं  जिस  ने  सदा के लिये  ऐसा महान  त्याग किया हो!


प्रशन:26 जब  उन्हों  ने  यह  महान त्याग किया  तो उन की उम्र कितनी  थी?

उत्तर :- 29  साल  उम्र  थी !


प्रशन :-27 कहा  जाता  है  की  गौतम  ने  इस महान त्याग  का  फैसला एक  बूढे को ,एक  बीमार  को ,एक  लाश  को  और  एक  साधु  को  देख कर  किया ! क्या यह  सच  लगता  है ?

उत्तर :-डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर   इस  आधार को नहीं  मानते ! वह कहते  हैं  कि इस  तरह  की  घटनाएँ  तो रोज़  हजारों  में  होती  हैं ,यह कैसे  हो सकता  है  कि वह 29 साल  की  उम्र से  पहले  उनको  देख  न पाये  हों!


प्रशन:-28  क्या गौतम  ने  रात  को अपनी सोयी  बीबी  और  बच्चे राहुल को चुपके  से  त्यागा  था ?

उत्तर: नहीं ,वह  दिन को  सब  से अनुमति  लेकर    घर  से  चले  गए थे!


प्रशन :-29 घर त्याग  करने  के बाद  वह  किस  और  गए   थे ?

उत्तर :-  वह  कपिलवस्तु  से  बहुत  दूर आनोमा  नदी  की और चले गए  !


प्रशन30 :- आनोमा  नदी  के  पास  जा  कर  गौतम  ने  क्या किया ?

उत्तर:- युवराज  सिद्धार्थ गौतम  वहां  पहुँच कर घोड़े  से  उतर  पङे ,अपने सुन्दर  बालों  को अपनी  तलबार  से  काट डाला,शाही  कपड़ों को  उतार कर सन्यासी वाले वस्त्र  पहन  लिए! घोङा और  कीमती  चीज़ें अपने  नौकर छन्न  को  सौंप कर  राजा शुद्धोधन  को  देने  के  लिये  कहा!


प्रशन :-31 इस के  बाद  क्या हुआ ?

उतर :-गौतम  राजा  बिम्बिसार के मगध राज्य  की राजधानी  राजगृह  पैदल चल  कर  गये?


प्रशन :-32 बहां उनको  कौन  मिलने  को  आया  था?

उतर :- बहां  खुद  राजा  बीम्बिसार  अपने मंत्रीयों  के  साथ  मिलने  आये!


प्रशन :-33 राजा  बिम्बिसार  ने  गौतम  से  कया  कहा?

उतर :- राजा ने  कहा  कि वह  बापिस  घर  चले  जाये  या  उनका आधा राज्य  ले कर  राजा बन कर  राज  करें!

प्रशन :-34 गौतम  का  क्या उत्त्तर  था ?

उतर :-गौतम  ने इस  प्रस्ताब  को  ठुकराते  हुए कहा कि उनका  लक्ष्य अब बहुत  बड़ा हो गया  है  जिस  के  कारण वह  उनका  प्रस्ताव नहीं  मान सकते!


प्रशन :-35 राजगृह  से  गौतम  कहाँ  गये?

उतर :- राजगृह  से  गौतम   उरुवेला  की और  चले गए,जो  बुद्ध  गया  के पास  है !

प्रशन :-36 उरुवेला  वह क्यों गए ?

उत्तर :-उस समय उरुवेला  के  जंगल  में  बड़े 2 ज्ञानी-ध्यानी,और साधू-सँया-सी रहते  थे ! उनके  विचार  जानने  के लिये वह  उनके  शिष्य  बने! आशा यह  थी  कि जिस  ज्ञान की  उसे  जरूरत  थी  वह  उसे उनसे   मिल जाये गा!


प्रशन :-37 वह  साद्धू-सन्यासी  किस  धर्म  को  मानने बाले  थे?

उत्तर :- वह  ब्राह्मणी धर्म को  मानने वाले  थे !


प्रशन :-38 वह  ब्राह्मणी  धर्म के  माननेवाले  साधु-सन्यासी क्या  शिक्षा देते थे ?

उत्तर :-उनका  उपदेश था कढिन पछतावा ,सख्त मेहन्त और  देह  को महान कष्ट के  द्वारा  इन्सान  को  पूर्ण ज्ञान होता है !

प्रशन :-39 क्या सिद्धार्थ  गौतम  ने  उन  ब्राह्मणी सन्यासियों  के  विचारों को माना?

उत्तर :- नहीं ,सिद्धार्थ  गौतम  ने  सन्यासियों के  विचारों   के अनुसार तपस्या  करके  देखी और कहा  कि यह  अतिवादी मार्ग  है ,इस  से  दुनिया से  दुःख दूर  नहीं  हो सकता!


प्रशन :-40 इसके  बाद  वह  कहाँ  गए ?

उत्तर :-वहां  से  उरुवेला के  जंगल  में  चले  गए  और  6  सालों  तक अपने  शरीर  को नाना प्रकार के  कष्ट दिए!

प्रशन :-41 क्या  बह  उरुवेला के  जंगल में  अकेले थे ?

उत्तर :- नहीं ,अकेले नहीं  थे ! उनके साथ पांच ब्राह्मण  सन्यासी  भी  थे !


प्रशन :- 42 उनके  नाम ?

उत्तर:-कौंडनय ,भदिेय,बप्प,महानाम  और अस्सजि उनके नाम थे
!

प्रशन :-43 पूरे  सच  को  पाने  के लिये  उन्होंने किस  ज्ञान-के  रास्ते  को अपनाया था ?

उत्तर :-बह  आसन लगा कर  एक स्थान पर बैठ गए  और उन्होंने  मन को एककर के मन की गहराई में जाने में  रूकावट  डालने  बाले  सभी विचारों  को हटा  दिया! और  अपना  ध्यान मानव जीवन  की  विकराल  समस्याओं पर टिका  दिया !

प्रशन :-44  क्या  तपस्या  करते  हुए,  सिद्धार्थ  गौतम  ने   खाना नहीं खाया?

उत्तर :-    खाया !पर  वह  खाने  की मात्रा को  घटाते गए  इस तरह  वह पूरे  50 दिनों  तक  लगभग  भूखे  रहे   !वह  अपने भोजनऔर  पानी की मात्रा को  कम से कम  करते  गए  और सिलसिला यहाँ  तक  आ  पहुंचा कि   हर रोज़  चावल  का  एक  दाना  या सरसों के एक  दाने    से  अधिक  कोई  चीज़ नहीं  खाते थे !


प्रशन :-45 क्या तपस्या  और  अपने आप को इतना  जयादा  भूखा रखने  से उनहें ज्ञान हासिल हो सका ?

उत्तर :- वह  लगातार  दुबले पतले  होते गए ! वह  इतने  कमज़ोर  हो  गये  कि एक  दिन  ज़मीन  पर  बेहोश हो  कर  गिर  पड़े !

प्रशन :-46 इस  घटना  पर  उनके साथी ब्राह्मण  सन्यासियों ने क्या सोचा?

उत्तर :-उन्होंने   यही  सोचा कि  यकीनन  सिद्धार्थ गौतम की  मौत  हो गई है ! लेकन  कुछ समय  बाद  उनको  होश आ गया !


प्रशन :-47 उन्हें  होश आने के बाद  क्या हुआ ?

उत्तर :-  सिद्धार्थ  गौतम के मन  में  यह  बात  आई  की  सिर्फ  उपबास रखने  से  या  अपने शरीर  को  कष्ट देने  से ज्ञान नहीं  पाया  जा  सकता है !इसलिये  उन्होंने  खाना खाने का फैसला किया !


प्रशन :-48 उनको  खाना  किस ने दिया ?

उत्तर :-सुजाता नाम  की  एक औरत ने  उन को  खाना[खीर ] दिया!


प्रशन :-49 फिर  किया हुआ ?

उत्तर :- वहां  से  गया  पहुंचे ! बहां  एक बड़  वृक्ष था  उस के  नीचे  बैठ कर बह  फिर  तपस्या  करने लगे !

प्रशन :-52 वह   वृक्ष के  नीचे किस  दिशा  की और  मुहँ करके  बैठे थे ?

उत्तर :-पूर्व दिशा  की  और  मुहँ करके!

प्रशन :50 इस   वृक्ष को अब क्या  कहा  जाता  है ?

उत्तर :-बोद्धि वृक्ष


प्रशन :-51 उस रात्रि  को  क्या उन को ज्ञान हासिल  हुआ ?

उत्तर :-तृष्णा शमन  के  मार्ग  का ज्ञान हुआ! भोर  होने से पहले  उनका मन  एसे  ही  खुल चूका  था  जिस तरह पूरी  तरह  कमल  का  फूल  खिल जाता है! बह  गौतम  से  बुद्ध  हो गए ! जगत  के पीछे चल रहे  सभी कार्यकारणों के  ज्ञानी हो गए !

प्रशन:-52 बुद्ध  का  सही अर्थ  क्या  होता है?

उत्तर:-  बुद्ध  यानि जिसे  पूरा   ज्ञान  हो ,जो  पूरी  समझ  रखता हो ,जो सब  कुछ  जानता हो!

प्रशन:-53 कार्यकारणों के ज्ञानी का  कया  अर्थ  है?

उत्तर :- दुनिया   में जो  कुछ  भी होता  है उस  का  कारण होता  है, उस हर  कारण  को जानने  बाले  को इस तरह  का  ज्ञानी कहा जाता  है!


प्रशन :-54 बुद्धत्ब तक  पहुँचने  के लिये  उनको  किन  मानसिक  हालात से गुजरना  पड़ा?

उत्तर :- जिस प्रकार  कोई योद्धा  किसी  युद्ध  में  अनेक  दुश्मनों  के साथ युद्ध करता है  बैसे ही  गौतम  को  मानवीय  कामनाओं और तृष्णाओं से  युद्ध करके उनपर   विजय  हासिल करनी पड़ी!


प्रशन :-55 इस प्रकार  ज्ञान हासिल  करके बुद्ध  ने  क्या किया ?

उत्तर :- शुरुआत में  उस  गंभीर ज्ञान का  जन साधारण  के  बीच  उपदेश देने  में  बुद्ध  को झिझक  महसूस  हुई!

प्रशन :-56 सो  कयों?

उत्तर :-कयों कि इस  ज्ञान की  गुढ़ता और गंभीरता को  समझना इतना आसान ना था ! इसलिये  उनको  अशंका  हुई कि बहुत थोडे  लोग ही  इसे समझ पाएंगे!


प्रशन :-57 फिर  बुद्ध ने   अपना  सन्देश दिया ?

उत्तर :   हाँ ,दिया ! बुद्ध  ने  सोचा  अज्ञान,अन्धबिश्बास और  तृष्णापूर्ण दुःख से पीङित समान्य जन मानस  को  फायदा होना जरूरी है ,इसलिये  आसान शब्दोंमें   अपने ज्ञान को जगत  को देने का  बुद्ध  ने  फैसला  लिया !


प्रशन :-58 वह  5 ब्राह्मण  सन्यासी फिर उनको  कब और  कहाँ  मिले  थे ?

उत्तर :- बुद्ध  को वह  दोबारा वाराणसी  में  मिले थे !

प्रशन :-59 बुद्ध  ने  क्या पहला उपदेश  इन को दिया था ? अगर  हाँ ,तो कहाँ ?

उत्तर :- हाँ ,सम्राट अशोक  दूारा वाराणसी में स्थापित  सिंह –स्तम्भ [हमारा राष्ट्रीय चिन्ह] के पास  बुद्ध ने  इन 5 ब्राह्मण  सन्यासियों को  पहला धम्म उपदेश  दिया !

प्रशन :-60  बुद्ध  के  धम्मुप्देश का  सार  क्या था ?

उत्तर :- बुद्ध  ने  कहा –दो सिरों  की बात है ,दो  किनारों  की बात है –एक तो काम-भोग  का  जीवन है  और  दूसरा  काया – कलेश  का जीवन  है ! पहला कहता है खाओ ,पीओ  और  मोज़ ऊङाओ ,क्यों  कि कल  तो मरना ही  है ! दूसरा  कहता  है की तमाम वासनाओं  की  जड़  ही  काट डालो क्यों यह  पुनर्जन्म का  कारणहैं !इन दोनों अतियों को  बुद्ध  ने  नामंजूर  कर  दिया! बुद्ध ने कहा“मैं ने  इन दोनों अतियों में  से  बीच  का रास्ता निकाल  लिया है!”इसे मध्यम मार्ग  भी  कहा जाता है!

प्रशन:61-बुद्ध  के  धम्म  में शामिल  होने के लिये  पहले  क्या   करना होता है ?

उत्तर :-बुद्ध  को नमन  करना होता है !

प्रशन62 :-  वह कैसे ?

उत्तर :- नम्मो  तस्स  भगवतो अर्हतो सम्मा स्म्बुधस्य कह कर!

प्रशन:-63 इस  का अर्थ ?

उत्तर:- मैं बुद्ध  को  नमन  करता हूँ !


प्रशन :- 64 फिर ?

उतर:-त्रिशरण  में  जाना  होता है?

प्रशन:-65  त्रिशरण   का अर्थ ?

उत्तर:- त्रि  का  अर्थ  होता है तीन और  शरण  का  अर्थ  होता  है सहारा या  आसरा! तीन  आसरों   या  सहारों  को  लेना होता है !


प्रशन:-66 पहले  आसरे  या  सहारे  को पाली में  लिखो!

उत्तर:-बुद्धम शरणम्   गच्छामि!

प्रशन:-67 इस  का  अर्थ  बताएँ!

उत्तर:- मैं  अपनी बुद्धि [दिमाग ]  और अपनी   ऊँची सोच   की शरण  में  जाता हूँ !

प्रशन:-68  दूसरी शरण लिखो !

उत्तर:- धम्मम् शरणम्   गच्छामि!

प्रशन :69  अर्थ  लखो !

उत्तर :-मैं बुद्ध  की  सोच  का  आसरा  लेता हूँ!

प्रशन :-  70  तीसरी  शरण  को  लिखें!

उत्तर:-संघम शरणम्   गच्छामि!प्रशन :-

71 संघम शरणम्   गच्छामि का  अर्थ  बताएँ!

उत्तर :- भिक्षु संघ की शरण  में जाता हूँ !

प्रशन :-72 संघ  का अर्थ ?

उत्तार :- संघ  का अर्थ है  संगठन यहाँ  अर्थ है भिक्षु संघ


प्रशन :-73 भिक्षु किसे  कहते  हैं ?

उत्तर :- जो  घर का  त्याग  करता है!और  बुद्ध  की  विचारधारा  को   लोगों को  बताता  है उसे भिक्षु कहा  जाता है  !

प्रशन :-74 बुद्ध  ने  कौन से  चार  आर्य सत्यों की  बात की  है ?

उत्तर :- पहला  आर्य  सत्य  है ,दुःख !दूसरा आर्य सत्य है ,दुःख का  कारण, तीसरा आर्य सत्य  है, दुःख का निवारण!  चौथा आर्य  सत्य  है ,दुःख  निवारणका  तरीका


प्रशन:-75 पहले आर्य सत्य दुःख  पर  प्रकाश डालें!

उत्तर :- दुनिया  में  दुःख  ही  दुःख  है  और  यह  व्यक्ति  ने  खुद  पैदा  किया हुआ  है! दुःख  का  आधार अज्ञानता है! दुःख का  सिलसिला चलता ही रहता है !

प्रशन :-76 दुसरे  आर्य सत्य  दुःख के  कारण पर प्रकाश डालें!

उत्तर :-  दुःख  सकारण  होता है! कामना  के  पूरा  न होने के कारण दुःख पैदा होता है !

प्रशन :-77 चौथे आर्य सत्य  दुःख के खात्में के तरीके  पर प्रकाश डालें !

ऊत्तर.   यह बैज्ञानिक रास्ता है! तथागत बुद्ध ने दुःख  के वजूद ,दुःख के कारण  और दुःख के निवारण और  निवारण के रास्ते का फार्मूला दुनिया  को दिया !


प्रशन:-79 उन  चीजों  के  बारे में बताएँ जो  दुःख  पैदा करती हैं !

उत्तर :-जन्म ,पैसा [जायदाद ] ,रोग ,मौत ,अपने रिश्तेदारों और चीज़ों से जुदा होना ,अच्छे न लगने बाले लोगों और  चीज़ों के  मिलने से  दुःख पैदा  होता है!तृष्णा दुःख  पैदा करती है !


प्रशन :-80 हम  अतृप्त तृष्णाओं और अज्ञानजनित कामनाओं को  पैदा  होने से कैसे रोक  सकते हैं?

उत्तर:-   त्रिशरण, पंचशील  और  आर्य –आठ तरह के  रास्तों  पर  चल कर  इन्हें रोका  जा सकता  है !


प्रशन:-81   आठ  भागों  वाले  रास्ते  को  लिखें!

उत्तर :-1.सम्यक दृष्टि———-सही  नज़र

2.सम्यक  संकल्प——सही फैसला

3. सम्यक    वाणी ———सही  बोलना

4.सम्यक  कर्मान्त………. सही  काम करना !

5.सम्यक आजीविका ………..सही  ढ़ंग से रोज़ी कमाना

6. सम्यक  व्यायाम ………… अच्छे विचारोंको पैदा  करना

7.सम्यक  स्मृति  और………….जागृत रहना!

8. सम्यक  समाधि…………….. मन  की सफाई  करना

 
-पंचशील लिखो!

1.मैं अकारण  जीवहत्या  नहीं  करूंगा!

2.मैं चोरी ,बेईमानी  और  लूट –पाट नहीं करूँगा!

3.मैं अपनी  बीबी  के  अलावा  दूसरी औरत  के साथ  शरीरिक सम्बन्ध नहीं  बनाऊंगा!

4.मैं झूठे,कठोर और  अनावश्यक  वचन  नहीं बोलूंगा!

5. मैं नशीली  चीज़ों  का  सेवन  नहीं करूँगा!


प्रशन:-82 इस उपदेश का  पांचों ब्राह्मणों पर  क्या प्रभाव  पड़ा?

उत्तर :-पाँचों  ने  बुद्ध  के सिद्धांतों  को  स्वीकार  किया  और  बुद्ध के  शिष्य  बन गए!

प्रशन:-83 इस के बाद बुद्ध  कहाँ  गए?

उत्तर:- उरुवेला गए ,वहां  उन्होंने  महाकश्यप  नामक व्यक्ति  को  उपदेश देकर  अपने  धम्म में शामिल  किया
प्रशन :-84 बुद्ध  ने इस के बाद  किस  महान व्यक्ति  को  धम्म में लाया ?


उत्तर :- मगध  के सम्राट  बिम्बिसार को  उपदेश दे कर बुद्ध धम्म  में लाए!

प्रशन :-85 इसके  बाद  कौन दो  व्यक्ति  उनके  शिष्य बने ?

उत्तर :-वह  दो व्यक्ति थे ,सारिपुतर और  मैध्गलयाण!

प्रशन:-86 क्या बुद्ध  अपने  पिता  को मिलने  गए?

उत्तर :- हाँ ,मिलने गए ,उनके पिता  ने  अपने  रिश्तेदारों और मंत्रियों को लेकर  उनका  बडे प्रेम और  उत्साह  के साथ  स्वागत किया !


प्रशन :-87 पिता के  घर रहने के प्रस्ताव  पर बुद्ध  ने पिता को  क्या  उत्तर दिया ?

उत्तर :- उन्होंने  अपनी  मधुरवाणी में  कहा की युवराज गौतम  अब  अपने बजूद  से बाहिर  जा  चुके  हैं और  अब बह  बुद्ध  की अवस्था  में बदल चुके हैं! जिस के  लिये अब  सभी प्राणी  अपने हैं ,एक  जैसे प्यारे हैं!

प्रशन :-88 बुद्ध ने भिक्षुणी संघ  की भी  स्थापना कब  की ?

उत्तर :-पिता  से  पहली  मुलाकात  के दौरान ही  उन्होंने यह  काम भी  कर डाला! महाप्रजापति गौतमी  जो उनकी मौसी और  सौतेली  माँ भी  थीं,पहली ऐसी  औरत  थी  जिन  को भिक्षुणी होने की  दिक्षा दी गई! और  उन्हें भिक्षुणी संघ  का मुखिया  बनाया  गया !

प्रशन :-89 इसके इलावा  और  किन औरतों  ने  धम्म  को  स्वीकार किया ?

उत्तर :- उनकी  पत्नी  यशोधरा और  अनेक  औरतों ने भिक्षुणी संघ  की सदस्यता हासिल की! यह एक  बहुत बड़ी बात थी !

प्रशन:-90 धम्म दिक्षा उन्होंने क्या सभी  को दी ?

उत्तर :- सभी  को ,खास  कर  नीच  समझी  जाने  वाली  जाति के  लोगों को दिक्षा  दे कर  धम्म  में  लाया!

प्रशन :-91 क्या बुद्ध  ने  समाजिक इन्कलाब  किया ?

उत्तर :- हाँ , किया  इस से   दलितों  को  ऊपर  उठने  का  मोका  मिला!

प्रशन:-92। वह  कितनी  उम्र  तक दिक्षा  देते  रहे?

उत्तर:- 80 साल  तक!


प्रशन:-93 कितने  साल बुद्ध  ने  धम्म  पर  काम  किया ?

उत्तर:- 45 साल

प्रशन :-94 अपने  पसंद  का   उनकाकोई एक  उपदेश  बताओ?

उत्तर :- बुद्ध  ने  कहा की उन का   या  किसी  का भी उपदेश  या  बात इसलिये  मत मानो  की कहने बाला  एक  बड़ा आदमी  है या  बह  बात या उपदेश एक  बहुत  बडे ग्रन्थ  में लिखी  गई  है कोई  बात  या  उपदेश अगर  आप की बुद्धि  की  कसौटी पर  खरी  उत्तरती है  तो  तभी  मानो अन्यथा  मानने  की  कोई  जरूरत  नहीं!

प्रशन :-95 क्या बुद्ध  की  विचारधारा  में  ज़ातपात  पाई जाती  है?

उत्त्तर:- नहीं !

प्रशन :-96   क्या  बुद्ध  की  विचारधारा  में  ऊँच-नीच  पाई जाती है ?

उतर :- नहीं !

प्रशन :-  क्या  बुद्ध की विचारधारा  में  वर्णव्यवस्था  पाई जाती है ?

उत्तर :- नहीं

प्रशन :-98 डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर  ने बुद्ध धम्म  को ही क्यों  माना ?

उत्तर :-  बुद्ध की  एक  वैज्ञानिक  विचारधारा है ,  इसलिये!

प्रशन :-99  क्या बुद्ध आत्मा –परमात्मा  में  यकीन  रखते थे?

उत्तर :-नहीं !


प्रशन:-100 उनका  महापरिनिर्वाण कहाँ  हुआ

उत्तर :- कुशी नगर  में  हुआ !

प्रशन :-101 कया  उन्होंने पहले  ही  अपने  महापरिनिर्वाण के  बारे  में  बता दिया  था?

उत्त र :-102 तीन महीनें  पहले  ही  उनको  पत्ता  चला  गया था1 और  बुद्ध ने  पहले ही  अपने  चेलों  को  बता  दिया था !

प्रशन :-103. अपनी  अंतिम  सांस लेने  से पहले  बुद्ध ने   क्या  कोई  अंतिम उपदेश दिया ?

उत्तर :- हाँ ,बुद्ध  ने भिक्षुओं को  कहा  अपने

और  दुनिया  के  कल्याण  के काम  करते  रहो ,और इस  तरह  बुद्ध  ने  अंतिम साँस  ली !बुद्ध जीवन ब सन्देश